वैदिक पंचांग के अनुसार ,प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस समय मार्गशीष का महीना चल रहा है इस समय काल में जयंती मनाई जाएगी पंचांग के अनुसार मार्गशीष में काल भैरव जयंती 23 नवंबर को मनाई जाएगी। ज्योतिषों का मानना है की ,काल भैरव जयंती पर इंद्र योग के महासंयोग बन रहे हैं। । इंद्र योग में काल भैरव की पूजा करने से उच्च पद प्राप्त होता है इसके साथ ही उनका आशीर्वाद बना रहता है। आज की खबर में जानेंगे भैरव जयंती पर किस प्रहर में भगवान काल भैरव की पूजा की जाए। साथ ही इसका महत्व क्या है।
इस योग में करें महाभैरव की पूजा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र योग में उज्जैन में स्थित अष्ट महाभैरव की पूजन करना महा फलदायी साबित हो सकता है। बता दे तंत्र के साथ ग्रंथो में मार्गशीष में आगे कृष्ण पक्ष के दिन मध्य रात्रि में काल भैरव की के प्राकट्य की मान्यता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार ,इस बार काल भैरव अष्टमी 23 नवंबर दिन शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन इंद्र योग में काल भैरव की पूजा की जाएगी। जो जातक शनिवार के दिन में काल भैरव की साधना इंद्रयोग की विशिष्ट साधना करते हैं उन्हें उच्च पद की प्राप्ति होती है इसके साथ ही काल भैरव की साधना बहुत ही शुभ और उपयुक्त माना गया है। मान्यता है कि इनमें वैदिक और तामसी दोनों ही प्रकार की पूजन का उल्लेख है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साधना, काल भैरव बाबा के पास मूल रूप से तमोगुण के अधिष्ठात्री हैं। यानी काल भैरव के पास तमोगुण का आधिपत्य है।
भगवान शिव के अंश है काल भैरव
ज्योतिषियों के अनुसार, काल भैरव भगवान शिव के अंश है। काल भैरव के दिन काल रात्रि में पूजा करने का विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जो भक्त सामान्य चार प्रहर में भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें काल भैरव की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि दौरान की गई सारी प्रार्थनाएं स्वीकार होती है। साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।