दूध को सुपरफ़ूड माना जाता है। क्योंकि इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। यदि वजह है कि डॉक्टर नियमित रूप से दूध पीने की सलाह देते हैं और लोग ऐसा करना पसंद भी करते है ज्यादातर लोग पक्का हुआ दूध पीते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इसमें नया प्रयोग करते हैं। कच्चे दूध का सेवन करने लगते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि यह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद पसंद अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि कच्चे दूध के सेवन से आप पेट की टीबी के शिकार हो सकते हैं जो कैंसर में बदल सकती है ।
आपको बार-बार फ़ूड पॉइजनिंग या पेट में दर्द होता है
अगर आपको बार-बार फ़ूड पॉइजनिंग या पेट में दर्द होता है या उल्टी दस्त होते है अचानक भूख और वजन कम होने लगता है तो ये लक्षण पेट की टीबी के हो सकते हैं। इसका मुख्य कारण कच्चे दूध का सेवन भी हो सकता है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सीएमएस और छाती व टीबी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुराग अग्रवाल ने बताया कि जो लोग कच्चे दूध का सेवन करते हैं उनमें पेट की टीबी हो सकती है जो कई बार कैंसर बदल जाती है ऐसा तब होता है जब दुधारू पशु को पेट की टीबी हो ।
पेट की टीबी और दिमाग की टीबी हो जाती है
हमने देखा ग्रामीण इलाकों में कई जगह आज भी कच्चा दूध या तो कच्चे दूध से बने दही का सेवन किया जाता है। अगर गाय संक्रमित होती है तो उसे टीबी के बैक्टीरिया की संबंधित व्यक्ति के पेट में जा सकते हैं। इसके अलावा अगर व्यक्ति को फेफड़े की तब होती है तो उसकी बैक्टीरिया पेट पर या सर में पहुंच सकते हैं इससे पेट की टीबी और दिमाग की टीबी हो जाती है।
पेट की टीबी को गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्यूबरकुलोसिस भी कहा जाता है,जो पोरेटोनियम और लिंफ में होती है।इसकी पहचान आसानी से नहीं हो पाती कोलोनोस्कोपी, एंडोस्कोपी और लिंफ नोड की बायोप्सी करके इसका पता लगाया जा सकता है।
पेट की टीबी की बचाव के तरीके
डॉक्टर अनुराग बताते है की फेफड़ों को टीबी की तरह पेट की टीबी का इलाज समय पर किया जा सकता है। 6 महीने से लेकर 12 महीने के इलाज से मरीज ठीक हो सकता है। पेट की टीबी के संक्रमण से बचने का सबसे अच्छा तरीका कच्चे दूध के सेवन से बचना है है साथ ही टीवी के रोगी का खांसते और और बोलते समय दूरी बनाकर रखनी चाहिए।