टूथपेस्ट में हड्डी के चूरे और साबुन का इस्तेमाल ,यहां जाने टूथ ब्रश चुनने से पहले जरूरी खबर

Saroj kanwar
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कुछ दिन पहले बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के दंत मंजन की खूब चर्चा हुयी। एक शख्स ने कोर्ट में याचिका दायर की और आप लगाया उनकी कंपनी का का दंत मंजन शाकाहारी नहीं है।इसमें समुद्र फेन यानी कटलफिश है की हड्डी से मिलने वाला पदार्थ मिलाया जा रहा है। इस मामले में 28 नवंबर को हाई कोर्ट में सुनवाई है। हम सभी की शुरुआत दांतो को साफ करने से होती है बस फर्क इतना। है कोई दंत मंजन ,कोई दातुन और कोई टूथपेस्ट का इस्तेमाल करता है। दांतो सेहत के लिए बेस्ट क्या है और इनतीनो में क्या फर्क है। कई लोग नहीं जानते हैं।

हड्डी और चूरे से बनता था दंतमंजन

सफेद चमकते दन्त पर्सनालिटी में चार चांद लगाते है। अब भले ही नमक, पुदीने ,चारकोल वाला टूथपेस्ट बाजार में बिक रहा है लेकिन लोग सदियों पहले दंत मंजन से ही अपने दांत चमकाते थे दंत मंजन की शुरुआत लगभग २६०० साल पहले चीन से हुई थी। यह एक पाउडर था जिसे पुराने जमाने की जानवरों की हड्डी और सीपियों के चूरे से तैयार किया जाता है लेकिन धीरे-धीरे से इसे मुलेठी, दालचीनी, लौंग, हल्दी, बेकिंग सोडा जैसी चीजों से बनाए जाने का आजकल बाजार में क्या आयुर्वेदिक में बिक रहे हैं जो एंटीबैक्टीरियल गुणों का दावा करते हैं।

पुराने लोग इसलिए करते हैं दातुन

दातुन का मतलब है पेड़ की टहनी पुराने जमाने लोग इसी से दांत साफ करते थे।गुरुग्राम में संजीवनी आयुर्वेद आचार्य डॉ.एस.पी कटियार कहते हैं की दातुन कई पेड़ की टहनियां से बनते है जिसके फायदे अलग-अलग है। लेकिन सबसे बेहतर दातुन वही है जो कड़वी है जैसे नीम। इसके अलावा बबूल, महुआ, जामुन, बांस, शीशम और अमरूद की टहनी से भी दातुन बनती है। नीम की दातुन बीमारियों के लिए रामबाण है। इससे दांत न सड़ते है और ना ही इनमे कीड़े लगते है। बबूल की दांतो और मसूड़े को मजबूत बनाती और छालो और पायरिया से बचाते है। महुआ कीदातुन से हिलते नहीं। दातुन हमेशा ताजी होनी चाहिएऔर इसे उकड़ू यानी स्क्वैट पोजीशन में बैठकर करना चाहिए।

साबुन से बना टूथपेस्ट

आजकल भले ही कई कलर और फ्लेवर में टूथपेस्ट मार्केट बिक रहे हैं। लेकिन दुनिया में पहली बार टूथपेस्ट साबुन से बनाया गया। 1824 मेंपीबॉडी नाम की डेंटिस्ट साबुन को डेंटल में पेस्ट से मिलाया था ताकि दांतो पर घिसते ही झाग बनने लगे। इसी सामग्री से 1850 में अमेरिका के बिजनेसमैन जॉन हैरिस को चाक को मिलाया था। इसके लगभग 23 साल बाद यानी 1873 में लोगों तक जारत में टूथपेस्ट को पहुंचाया गया। आज यह एक नामी टूथपेस्ट कंपनी बन चुकी है। 1892 में डॉ.वाशिंगटन शेफील्ड ने टूथपेस्ट को ट्यूब में डाला आज बाजार में उपलब्ध सभी टूथपेस्ट पानी, एब्रेसिव, फ्लोराइड और डिटर्जेंट से बन रहे हैं जिसमे कई तरह के रंग ऊपर फ्लेवर मौजूद होते है।

टूथ पेस्ट ओरल के हिसाब से चुने

टीवी पर एक विज्ञापन है जो खूब चला जिसमे पूछा गया की क्या आपके टूथ पेस्ट में नमक है बाजार में बिक रही टूथपेस्ट में लगभग एक जैसे ही इंग्रीडिएंट्स
है। लेकिन ज्यादा नमक यानी हाई सोडियम दांतो को खराब कर देता है। अगर किसी को दांतों में दिक्कत होने बीमारी के हिसाब से टूथपेस्ट इस्तेमाल करना चाहते की सेंसिटिविटी पायरिया जैसी बीमारियों में अलग अलग टूथपेस्ट आते है ।

टूथपेस्ट कौनसा इस्तेमाल करें इससे ज्यादा जरूरी है कि लोग अपनी ओरल हाइजीन पर ध्यान दें । इंडियन डेंटल एसोसिएशन के मुताबिक ,हमारे देश में 28% लोगों दिन में दो बार ब्रश करते है। 85% डेटंल केविटी के शिकार होते है 51 परसेंट टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते हैं। दांतों की सेहत के लिए दिन में दो बार ब्रश करना वह जरूरी है ।

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