सत्यनारायण की पूजा से मिलता है हजारो यज्ञो के समान फल ,स्कन्द पुराण में स्वयं भगवान विष्णु ने बताया इसका महत्व

Saroj kanwar
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हिंदू धर्म में भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा को विशेष महत्व दिया जाता है। यह कहा तौर पर मांगलिक कार्य जैसे विवाह ,गृह प्रवेश , नामकरण के समय आयोजित की जाती है । माना जाता है की कथा का श्रवण करने से साधक के जीवन में सुख और समृद्धि का प्रवास होता है। भगवान सत्यनारायण जी की भगवान विष्णु का एक स्वरूप है । की पूजा का वास्तविक अर्थ ‘सत्य का नारायण के रूप’ में पूजन करना है। सत्यनारायण की कथा ने केवल श्रद्धा भाव उत्पन्न करती है बल्कि व्यक्ति को कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं भी प्रदान करती है। यहां जानते हैं कि भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा करने से व्यक्ति को क्या-क्या लाभ मिल सकते हैं।

सत्यनारायण की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया

स्कन्द पुराण में भगवान सत्यनारायण की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया। जब भगवान विष्णु ने नारद को सत्यनारायण व्रत का महत्व बताया है। मान्यता है कि जो भक्त सत्य को कि जो भक्त सत्य को ईश्वर मानते हुए निष्ठा से इस व्रत कथा का श्रवण करते हैं उन्हें इसके मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। इस पुराण में कहा गया है की सत्यनारायण की कथा सुनने से व्यक्ति को हजारों वर्षों तक किए गए यज्ञो के बराबर फल मिलता है । इसके साथ इस कथा का पाठ करने से साधक के जीवन की कई परेशानियां खत्म हो जाती है। यह पूजा नकारात्मक शक्तियों शिक्षा प्रदान करती है और यह पूजा नकारात्मक शक्तियों से भी सुरक्षा प्रदान करती है।

किसी भी महीने की एकादशी , पूर्णिमा है या गुरुवार के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा करना अत्यंत शुभ माना गया है इसके साथ ही भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा से महिला और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। यह भी कहा जाता कि जब कोई व्यक्ति सत्यनारायण की कथा का आयोजन करता है तो उसे अधिक लोगों को कथा में आमंत्रित करना अच्छा मना जाता है।

कथा और पूजा के नियम

सत्यनारायण व्रत के अवसर पर पूरे दिनों उपवास रखना है। प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निर्मित होने के बाद साफ सुथरे वस्त्र पहने। एक चौकी पर लाल रंग का बिछाकर सत्यनारायण भगवान की तस्वीर को स्थापित करें। चौकी के समीप एक कलश भी रखें।। इसके बाद पंडित को बुलाकर सत्यनारायण की कथा श्रवण करें। भगवान को चरणामृत, पान, तिल, रोली, कुमकुम, फल, फूल, सुपारी और दुर्वा आदि अर्पित करें। कथा में परिवार के साथ-साथ अन्य भक्तों को भी शामिल करें। अंत में सभी लोगों में कथा का प्रसाद बांटें।

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