हिंदू धर्म ग्रंथो पुराणों में भगवान विष्णु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। श्री हरी यानि विष्णु भगवान को त्रि देवो में से माने जाते हैं। उनकी विधिवत पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की पूजन के लिए एकादशी की तिथि को श्रेष्ठ माना जाता है। बैशाख महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु की पूजन का विशेष महत्व है। इस एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से भी जाना था।
पूजा करने और उपवास करने से मन को शांति मिलती हो
कई लोग इसे किसी को पैसा भी कहते हैं की पूजा करने और उपवास करने से मन को शांति मिलती हो नकारात्मकता का नाश होता ऐसी मान्यता है इस वर्ष एकादशी 4 मई को पड़ रही है। यहां जानते हैं वरुथिनी एकादशी का महत्व और इस दिन किस प्रकार से श्री हरि की पूजा करनी चाहिए साथ ही यह भी जानते हैं हम विष्णु भगवान को इस दिन किस प्रकार के भोग प्रसाद अर्पण करना चाहिए ताकि उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
एकादशी की तिथि 13 मई को रात 11:00 से आरंभ हो जाएगी
जिस भक्त पर नारायण की कृपा हो उसे संसार की किसी भी वस्तु आवश्यकता ही नहीं होती ऐसा माना जाता है। नारायण को प्रसन्न करने के लिए और इतनी एकादशी का दिन श्रेष्ठ है।वरुथिनी का अर्थ सुरक्षा होता है इस दिन जो उचित रूप से नारायण के पूजन करेगा उसे नारायण की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होगी। एकादशी की तिथि 13 मई को रात 11:00 से आरंभ हो जाएगी जबकि अगले दिन यानी 4 मई को रात से 8:30 को इस तिथि का समापन होगा।
आराध्य देव को तुलसी पत्र अवश्य अर्पण करें
ऐसे में व्रत उपवास रखने के लिए 4 मई श्रेष्ठ रहेगी। उपवास रखकर नारायण का पूजन करने वाले भक्तों के लिए पूजा का मुहूर्त सुबह 7:18 से 8:58 तक रहेगा । इस दौरान पूजा करने से अच्छे पुण्य लाभों की प्राप्ति होगी। इस व्रत को रखने वाले सभी श्रद्धालु समय स्नान आदि से निवेदन कर पूजा की मुहूर्त परसच्चे श्रद्धा भाव से श्री हरि का पूजन करें। ध्यान रहें की भगवान विष्णु को तुलसी पत्र काफी प्रिय होता है। ऐसे में आराध्य देव को तुलसी पत्र अवश्य अर्पण करें।
तुलसी के पत्ते के भाव में यह पूजा अधूरी मानी जाती है
तुलसी के पत्ते के भाव में यह पूजा अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा पंचामृत का भोग भी नारायण को अति प्रिया होता है। इसका भोग लगाने से भी हरी प्रसन्न होते हैं। ऐसी मान्यता है की पूजन के दौरान विष्णु जी की आरती और श्री हरि के मंत्रो का जाप करें। पूजा के बाद सभी परिजनों और इष्ट मित्रो का प्रसाद बांटे। व्रत का पारण अगले दिन यानी 5 मई को करें। पारणके लिए सुबह 5.37 से 8.17 के बीच का समय श्रेष्ठ रहेगा।