सनातन धर्म में सुबह और शाम के समय देवी देवता की पूजा करने का विधान है। चाहे कोई त्यौहार हो या फिर रोजाना की पूजा दीपक के बिना ईश्वर की आराधना पूरी नहीं मानी जाती । दीपक से जुड़ी हुयी कथाएं और मान्यताएं उसके पीछे के रहस्य को बताती है । आईए ज्योतिष में क्या है दीपक और दीपक की लौ से जुड़े रहस्य साथ ही जाने किस दिशा में दीपक दिखाने का महत्व है।
दीपक जलाने के नियम
ऐसी मान्यता है कि भगवान की पूजा दिन में दो बार सुबह और शाम करना शुभ होता है। ध्यान रखे की आरती करते समय पूजा की थाली में पहले से रोली से स्वास्तिक बनाए और उसके बाद पुष्प स्थापित करें और फिर दीपक रखें।
इस बात का खास ध्यान रखें की आरती करने से पहले आरती के बाद शंख अवश्य बजाए यदि संभव हो तो आरती के दौरान बीच में शंख बजा सकते हैं। आरती करते समय कोशिश करें की थाल को ॐ वर्ण के आकार में घुमाये।
भगवान की आरती करते वक्त अपने आराध्य के चरण की ओर चार बार नाभि की तरफ ,दो बार और अंत में एक बार मुंह की तरह जरूर घुमाये। इस पूरी प्रक्रिया को कुल सात बार दोहराये।
आरती के दौरान ध्यान रखेंगे पहले से जले हुए दीपक में दोबारा से बाती या कपूर ना जलाये। यदि मिट्टी का दिया हो तो उसे बदलकर नए दिया जलाने और अगर दीपक धातु का बना हो तो उसे अच्छी तरह से मांजकर दोबारा इस्तेमाल करें।
जब भी देवी देवताओं की आरती करें ध्यान रखें की बैठ ना हो। यदि आप शारीरिक तौर पर खड़े होने में असमर्थ है या किसी कारणवश खड़े नहीं हो सकते तो ईश्वर की क्षमा याचना करते हुए आरती की पूजा को पूरा कर सकते हैं।
कहा जाता है की पूर्व दिशा भगवान विष्णु की मानी जाती है। इसलिए इस दिशा में लौ दिखानी चाहिए। दक्षिण दिशा पितरो की दिशा होती है इस दिशा में लौ दिखाने से पितरो का आशीर्वाद मिलता है। इससे व्यक्ति को अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है।