ऑनलाइनस्किमिंग के जारी अलग-अलग तरीकों से लोगों के ठगने वाले स्कैमर्स को आपकी जानकारी कैसे मिल जाती है। आपको बैंक ऑनलाइन शॉपिंग तक, स्कैमर्स को सब पता चल जाता है और उसके आधार पर वो जाल बिछाते हैं जिसमें फंसना तय है। इन दिनों भारत में डिजिटल अरेस्ट स्कीम चल रहा है बड़ी संख्या में लोग इसके शिकार हो रहे है। लोग इसे कानूनी प्रक्रिया समझकर लाखों रुपए गंवा रहे है। यूएस ऑफिस ऑन ड्रग्स क्राइम ने हाल ही में इस पर एक विश्लेषण किया जिसे पता चला कि ऐसी साइबर अपराधी अभी प्रोफेशनल इंडस्ट्री की तरह काम कर रहे हैं। इनमें से ज्यादा साउथ ईस्ट एशिया से है।
TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक ,UNODC (यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम) के क्षेत्रीय विश्लेषक जॉन वोजिक ने आगे कहा की ,क्राइम में एज ए सर्विस को एक नया मॉडल सामने आया है एआई और क्रिप्टो का उपयोग और भूमिगत ऑनलाइन बाजार इसे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। कोविड से पहले भी आमतौर पर रेंडम डायल करते थे । कुछ मामलों में उन्होंने चोरी किए गए डेटाबेस का इस्तेमाल किया। आज भी पहले से कहीं ज्यादा सस्ते में नाम वाले फोन नंबर प्राप्त कर सकते हैं। स्कैमर्स हर महीने एक छोटा सा भुगतान करके नाम या नंबरों की सूची की सदस्यता लेते हैं जिसे हर कुछ महीनो में अपडेट किया जाता है । लोगों को यह जानने की जरूरत उनकी जानकारी इंटरनेट पर स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और इसका औद्योगिक स्तर पर उपयोग किया जा रहा है । और यह सभी के लिए सुलभ है।
हम गोपनीयता के बाद के युग में जा रहे हैं जहां पर पहले जो जानकारी संवेदनशील थी अब वो अधिक संवेनदशील नहीं हो सकती । वैसे भी, नाम, पते आदि वाली सूचियाँ Facebook, Instagram आदि से आती हैं। एप्सके पास आपकी फोन कीअधिंकाश चीजों तक पहुंच होती है जैसे नाम ,नंबर ,नाम ईमेल, स्थान और आपका कैलेंडर चीजे , आपकी संपर्क सूची, कौन से ऐप इंस्टॉल हैं, आदि। डेटा अपलोड हो जाता है सोशल मीडिया सेवा प्रदाता डेटा पैकेज करता है और इसे अन्य पार्टियों को बचाता है और डाटा को छोड़ जाते हैं फिर से पेक करता है बेचते हैं। यही कारण है की हाल के वर्षो में सोशल नेटवर्किंग का उपयोग करने वाले लोगोंका स्कैमर्स से टेक्स्ट, कॉल और स्पैम प्राप्त हो रहे हैं। जब आपने “मैं सहमत हूँ” पर टैप किया, तो आपने सहमति व्यक्त की। आपने स्वेच्छा से अपना फ़ोन नंबर देने और इसे इंटरनेट पर डोक्स करने के लिए कहा।