व्रत में खायी जाने वाली केले की इस जलेबी का लोग करते है एक साल तक इन्तजार ,केवल कांवड़ियों को लिए होता है ये खास इंतजाम , बनाने की विधि

Saroj kanwar
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जलेबी तो आपने बहुत खायी होगी लेकिन क्या आपने कभी केले से बनी जलेबी खाई है। आपने तो ज्यादातर दाल और मैदे के मिश्रण से बनी जलेबी खायी होगी लेकिन ये उपवास में वर्जित है। आज हम आपको केला , दूध ,दही और आलू से बनी फलाहार जलेबी में बता रहे है। जो एक बार केले की बनी जलेबी का स्वादचखता है वह बार-बार इसका स्वाद लेना चाहता है।

जलेबिया मोड़ पर आपको ₹15 प्रति पीस डिश में मिल जाएगी

बांका के कांवरिया कच्ची पथ पर जलेबिया मोड़ पर आपको ₹15 प्रति पीस डिश में मिल जाएगी। विश्व प्रसिद्ध स्रावणी मेले को लेकर देशभर में यह लोग सुल्तानगंज उत्तर वाहिनी गंगा से चलकर पैदा यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर के जाकर जलाभिषेक करते हैं। यह पैदल पथ कुल 105 किलोमीटर का सफर हैऔर ज्यादातर श्रद्धालु व्रत में ही यात्रा करते हैं।

बांका में यह जलेबी विशेष कर बाबा धाम जाने वाले कांवरियों के लिए बनाया जाता है। फलाहार के रूप में बेफिक्र होकर कांवरिया जलेबी को खा सकते हैं । यह खास जलेबी मैदा या कलाई दाल से नहीं बनाई जाती बल्कि दूध दही और केले को मिक्स कर जलेबी के रूप में छानकर गरमा गरम चीनी की चाशनी में डुबोकर बनाई जाती है।

इसका स्वाद कभी नहीं भूल पाएंगे

अगर आप एक बार केले की जलेबी के स्वाद चख लेंगे तो यकीन मानिए आप इसका स्वाद कभी नहीं भूल पाएंगे। इस खास जलेबी को खाने के लिए लोगों को 1 साल का इंतजार करना पड़ता है। दुकानदार ने जलेबी को लेकर कहा कि केला ,दूध ,दही और आलू को पीसकर इससे घोलकर घी में छान दिया जाता है। फिर चासनी में डुबोकर कावड़ियों को दिया जाता है।

यह सिर्फ सावन और भाद्रपद्र 2 महीने के लिए बनाए जाते हैं । वहीं कावरियों ने बताया कि जब भी कांवरिया फलाहारी पर चलता है उसके लिए काफी अच्छी जलेबी है हम लोग भी इसे बेफिक्र खाते हैं। इसे खाने से शरीर को थोड़ी एनर्जी मिलती और मन तरोताजा हो जाता है ऐसे साथ ही खाने में काफी लजीज भी है।

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