हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक और गुजारा भत्ता से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने मैंटिनेंस की रकम तय करने के लिए आठ मापदंड तय किए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पति को अनुचित आर्थिक दबाव को सामना ना करना पड़े और पत्नी को एक सम्मानजनक जीवन स्तर मिले। यह फैसला उस पृष्ठभूमि में आया है जब अतुल सुभाष खुदकुशी केस ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
पत्नी की प्रताड़ना और फैमिली कोर्ट की जज द्वारा अनुचित रकम मांगने आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली
बेंगलुरु की प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर थे ने अपनी पत्नी की अपनी पत्नी की प्रताड़ना और फैमिली कोर्ट की जज द्वारा अनुचित रकम मांगने आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली उन्होंने 24 पन्नों का सुसाइड नोटऔर 80 मिनट का वीडियो संदेश छोड़ा है जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की है। सुभाष की मौत के बाद सोशल मीडिया पर गुजारा भत्ता से जुड़े कई मामले में अदालत द्वारा लिए गए प्रश्नों पर सवाल उठ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने नए आदेश में कहा कि स्थाई गुजारा भत्ता की राशि तय करते समय ध्यान रखना आवश्यक है कि किसी भी पक्ष को दंडित करने के बजाय पत्नी और बच्चों के लिए सम्मानजनक जीवन स्तर सुनिश्चित करें। अदालतने ये भी स्पष्ट किया कि इस राशि को तय करने के लिए केस-टू-केस विश्लेषण करना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट के 8 नए मापदंड
सुप्रीम कोर्ट ने आठ मापदंडों के जरिए अदालतों को निर्देश दिया है कि वे पति पत्नी की सामाजिक आर्थिक स्थिति ,आय ,संपत्ति रोजगार की स्थिति और भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखें ,इसमें ये भी देखा जायेगा की क्या पत्नी ने परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ी है। । इसके साथ ही पति की अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखा जाएगा।
रजनीश बनाम नेहा केस
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2020 के रजनी बनाम neha केस बाद आया है जहाँ अदालत ने कहा था कि तय करने के लिए कोई फिक्स्ड फॉर्म्युला नहीं हो सकता। अदालतों को दावेदार और प्रतिवादी की आय, संपत्ति और उनकी जिम्मेदारियों का विश्लेषण करना होगा।
अदालतों की पूर्व टिप्पणियां और विवाद
पिछले कुछ वर्षों में अदालतों की कुछ टिप्पणियां जैसे ‘भीख मांगो उधार लो या चोरी करो, लेकिन मेंटेनेंस दो ‘ ने विवाद खड़ा किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला इन टिप्पणियों और मनमाने फैसलों पर लगाम लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।