‘काश के फूल से करे पितरो को तर्पण है जो है उन्हें अति प्रिय ,इन फूलो से भूलकर भी न दे तर्पण

Saroj kanwar
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हिंदू धर्म में पितृ पक्ष काफी महत्वपूर्ण है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए लोग श्राद्ध करते हैं। मान्यता है पितृपक्ष में सभी पितृ पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। उनकी इच्छा होती है किउनका श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करें , ताकि उन्हें शांति मिलती है। इस बार 17 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है जो 2 अक्टूबर 2024 को समाप्त होगा।

श्राद्ध में तर्पण के समय एक फूल को विशेष महत्व है

श्राद्ध में तर्पण के समय एक फूल को विशेष महत्व है इस फूल का नाम ‘काश ‘है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ,पूजा में कास के फूलों का इस्तेमाल ना करने से श्राद्ध कर अधूरा माना जाता है।ऐसे में यहां जानते हैं श्राद्ध में ‘काश ‘ के फूल का इस्तेमाल करने क्या और कितना महत्व है।

श्राद्ध तर्पण कुछ चीजों का खास महत्व होता है

श्राद्ध तर्पण कुछ चीजों का खास महत्व होता है उनका इस्तेमाल बहुत जरूरी माना जाता है पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण के दौरान किसी पुष्प का इस्तेमाल नहीं होता है। इसलिए तर्पण के लिए काश की फूलों का उपयोग किया। अगर काश का फूल नहीं मिला है तो जूही ,चंपा या मालती की फुल से तर्पण कर सकते हैं। पुराणों में पितृ तर्पण के दौरान काश की फुल का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है।

तर्पण करते समय कुश और तिल का खास इस्तेमाल करना बेहद ही शुभ है

कहा गया है कि तर्पण करते समय कुश और तिल का खास इस्तेमाल करना बेहद ही शुभ है।उसी तरह काश के फूल का होना भी शुभ फलदाई है। माना जाता है कि पितरों का प्रश्न करने के लिए काश के फूल का होना जरूरी है इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।श्राद्ध और तर्पण के लिए कभी गलती से भी बेलपत्र ,केवड़ा , कदम्ब, मौलसिरी, करवीर और लाल-काले फूलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए । मान्यता है की ऐसा करने से पितृ नाराज हो जाते है और उनकी नाराजगी परिवार पर क्षनत बनकर टूटता है और आर्थिक स्थति कमजोर करते है।

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