अब सरकार ने कर दिया ऐसा इंतजाम की कम पानी होने पर भी किसान कर सकेंगे चावल की खेती ,यहां जाने इसके बारे में सब कुछ

Saroj kanwar
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धान की खेती की जब हम बापानी की कमी है तो धान की है उन्नत किस्म लगाया दे खर्च और कम समय में होगी ऊपर जिसे जल्दी और कम लागत में हो जाएगा धन की खेती की जब हम बात करते हैं तो पानी की जरूरत ध्यान में आते हैं जिससे जिनके पास पानी की बढ़िया व्यवस्था होती है वहीं धान की खेती कर पाते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं है धान की खेती का अब कम पानी में भी की जा सकती क्योंकि जलस्तर घटना जा रहा है जिसकी वजह से किसी वैज्ञानिकों ने किसानों को राहत देने के लिए कुछ ऐसी किस्म में विकसित की है जिन्हे कम पानी की आवश्यकता होती है यानी कि अगर पानी की व्यवस्था अच्छी नहीं है तो कुछ भी किसान फिर भी किसान धन की खेती कर सकते हैं। तो चलिए आज हम जानेंगे कि धान की कौन सी वह उन्नत किस्म है जिन्हें कम पानी में भी किया जा सकता है। न्हें तैयार होने में कितना समय लगता है और प्रति हेक्टेयर उसमें कितने टन का उत्पादन मिलेगा। जिससे आप अपने अनुसार उनमें से किसी सही किस्म का चुनाव करके खेती कर सके।

धान की उन्नत किस्म

वंदना (आरआर 167-982)-

यह धान बेहद कम समय करने वाली है । अगर आपको बहुत कम समय धान की खेती करनी है इसे लगा सकते हैं। क्योंकि यह 90 से 95 दिन में इंतजार हो जाती है। बता दे की सबसे पहले धान की खेती 1992 में झारखंड के छोटा नागपुर पठार में की गई थी। वही उड़ीसा की बात करेंका जो ऊपरी इलाका है। वहां साल 2002 में इसकी खेती की सूचना जारी की गई थी। इस किस्म की ऊंचाई की बात करते से 95 से 110 सीटर सेंटीमीटर देखी गई। इसकी खेती किसान पर भी कर सकते हैं। जहां पर पानी कम हो और मिट्टी में अम्लता हो। क्योंकि यह उसके प्रति सहनशील रहती है। इस धान के दाने मोटे लंबे होते हैं। अब इसके उत्पादन की बात करें तो 3.5- टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलेगा। वही रोग प्रतिरोध की क्षमता की बात करें तो यह सिर्फ दो रोग हो जिसमें वंदना वंदना ब्लास्ट और ब्राउन स्पॉट रोग आते है। इनके प्रति मध्य प्रतिरोधी मानी जाती है। इस तरह यहां पर इसकी पूरी जानकारी दी गई है । आप अपनी आवश्यकता के अनुसार इसके बारे में विचार कर सकते हैं।

कामेश (सीआर धान 40)-

पानी की बहुत बड़ी समस्या है सूखा पड़ रहा है तो क्षेत्र में स्थान की खेती कर सकते हैं। क्योंकि झारखंड और महाराष्ट्र में जब सूखे के का मामला था 2008 में जारी और सूचना के अनुसार इस खेती की गई थी इसे पकने में 110 दिन का समय लगता है और इसकी ऊंचाई 100 से 105 सेंटीमीटर रखी गई इसके उत्पादन की बात करें तो 3 से 3.5 हेक्टर देखी जाती है यह उसे जमीन में भी लगाई जा सकती जो समतल नहीं है। इसके अलावा ऊंचे इलाकों में अच्छी बारिश होती है तो यहां इसकी खेती बढ़िया रहेगी।जिसमें सफेद पीठ वाला पौधा एफिड, पत्ती कर्लर, भूरा धब्बा, तना छेदक, और गॉल मिज ब्लास्ट आदि आते। इसकी खेती आप उन क्षेत्र में कर सकते हैं जहां वर्षा कम होती है और ऊपरी की क्षेत्र में सीधी बुवाई की जाती है। वहां के लिए यह बढ़िया रहेगी। इस तरह इन सारी बातों को ध्यान रखते हुए किसान इस किस्म का भी चुनाव कर सकते हैं।

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