अब धर्म के आधार पर नहीं मिलगेगा किसी को आरक्षण ,यहां जाने क्या है आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश

Saroj kanwar
4 Min Read

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार की आज की खबर सुनवाई के दौरान कहा की आरक्षण केवल धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता है। याचिका कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थीजिसमें 77 समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत करने के राज्य के फैसले को रद्द कर दिया गया था इनमें से अधिकांश समुदाय मुस्लिम धर्म से संबंधित है।

आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

राज्य के सीनियर एडवोकेट को बताया किया यह वर्गीकरण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि समुदाय के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर किया गया था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यकों की आबादी 27-28% है। सिब्बल ने दलील है की रंगनाथ आयोग ने मुस्लिम समुदायों के लिए 10% आरक्षण की सिफारिश की थी और इनमें से कई संविधान पहले से केंद्रीय ओबीसी सूचना में शामिल है उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के 4% मुस्लिम आरक्षण को रद्द करने वाले फैसले पर भरोसा किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगाई थी।

धारा 12 को कैसे रद्द किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा कि कोलकाता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2012 धारा 12 को कैसे रद्द किया। यह धारा राज्य को पिछड़े वर्गो की पहचान करने की शक्ति प्रदान करती है। खंडपीठ ने इंदिरा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि वर्गीकरण और पहचान करना कार्यपालिका की शक्ति है।

कोलकाता हाई कोर्ट ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की सार्वजनिक घोषणा को अमल में लाने के लिए जल्दबाजी में 77 वर्गों को OBC के रूप में वर्गीकृत किया।आयोग ने आवेदन या आपत्तियों को आमंत्रित करने की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। वर्गीकरण में शामिल 42 वर्गों में से 41 मुस्लिम समुदायों के थे, जो धर्म-विशिष्ट आरक्षण का संकेत देता है। अदालत ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है और वर्गीकरण बिना पर्याप्त डेटा के किया गया। अदालत ने कहा कि संविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ और वर्गीकरण बिना पर्याप्त डाटा के किया गया था।

कपिल सिब्बल ने कहा की पश्चिम बंगाल सरकार के पास पिछड़ेपन का मात्रात्मक डेटा है और यह निर्णय बड़े पैमाने पर छात्रों और अन्य लोगों को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट के फैसले के कारण लगभग 12 लाख OBC प्रमाणपत्र रद्द हो गए।उन्होंने कहा कि 2010 से पहले 66 हिंदू समुदायों को पिछड़े वर्गों में वर्गीकृत किया गया था और उनकी प्रक्रिया को कभी चुनौती नहीं दी गई। लेकिन 2010 के बाद मुस्लिम समुदायों को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

आगे की सुनवाई


सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2025 तक स्थगित कर दी है। अदालत ने राज्य सरकार से हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि सर्वेक्षण की प्रकृति क्या थी? क्या पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना वर्गीकरण किया गया?

आरक्षण का आधार धर्म नहीं, बल्कि पिछड़ापन होना चाहिए। उच्च न्यायालय ने OBC वर्गीकरण में उचित प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई के लिए समय दिया है।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *