14 सालो के दौरान भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ इन जगहों पर किया था निवास

Saroj kanwar
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रामायण में वर्णन है कि भगवान श्री राम ने को 14 वर्षों का वनवास मिला था। इस वनवासी भगवान राम अपनी पत्नी सीता के और भाई लक्ष्मण भी साथ गई थी। तीनो अयोध्या छोड़ 14 वर्ष तक भारत के उत्तर से सूरतगढ़ दक्षिण तक विभिन्न स्थानों पर रहे। वनवास काल में श्री राम और लक्ष्मण कई ऋषि मुनियों से शिक्षा विद्या ग्रहण की। आइये जानते हैं प्रभु वनवास के दौरान प्रभु राम कहां-कहां गए।

केवट ने पर करवाया तमसा नदी पार

रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार ,श्री राम अयोध्या से निकलकर सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे जो अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर है। यहां से तीनों ने गोमती नदी पार कर प्रयागराज से 20 -22 किलोमीटर दूरी पर स्थित श्रृंगवेरपुर पहुंचे। उस समय निषाद राज का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने नाव से गंगा पार करवाने के लिए कहा था। रामायण में इलाहाबाद से 22 मील उत्तर पश्चिम की ओर ‘सिंगरौर’ का मिलता है। यह नगर गंगा घाट की तट पर स्थित है। इलाहाबाद जिले के कुरई नामक जगह है।

चित्रकूट

श्री राम ने संगम की सभी यमुना नदी को पार की ओर चित्रकूट पहुंचे। राम का युद्ध वापस ले जाने के लिए भरत चित्रकूट पहुंचे थे। चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) अत्री ऋषि का आश्रम था। श्री राम ने आश्रम में कुछ वक्त बिताया था।

दंडकारण्य

अत्रि ऋषि के आश्रम के बाद श्री राम ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रम स्थल बनाया। श्री राम ने अपने वनवास का सबसे ज्यादा समय यही बिताया है। यहां लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।

पंचवटी

दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रम में रहने के बाद श्री राम अगस्त्य मुनि के आश्रम में गए। नासिक के पंचवटी अगस्त ऋषि के आश्रम में भी श्री राम ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया। यह वह स्थान है जहां पर लक्ष्मण ने शूर्पणखानाक काटी थी। इसके बाद दोनों भाइयों ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया। इस क्षेत्र में मारीच और खरदूषण के वध के बाद राक्षस राज रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और जटायु का भी वध किया।

सीता को खोजने श्री राम लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंचे। मार्ग में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए जो आजकल केरल में स्थित है। वह ऋषिमुख पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की। इसके बाद श्री राम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े।

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