सुप्रीम कोर्ट ने सेना के एक पूर्व कर्मी को 50 लख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है जिसे डॉक्टर द्वारा गलती से एड्स बताए जाने के बाद 2 दशक से अधिक समय पहले सेवा से बर्खाश्त कर दिया गया था। न्यायालय में कहा कि लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते हुए उसे मानसिक आघात और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ा। अदालत ने 2001 में बर्खास्त किए हवलदार सत्यानंद सिंह के प्रति उदासीन रवय्ये के लिए कोसेना फटकार लगाई।
सिंह को 30 अक्टूबर 1993 में सेना में शामिल किया गया था
सिंह को 30 अक्टूबर 1993 में सेना में शामिल किया गया था और 6 साल बाद उन्हें एचआईवी संक्रमित घोषित किया गया था जबकि उस समय वो सिर्फ 27 साल के थे। तब उन्हें सेवा से बर्खाश्त कर दिया गया। मानसिक पीड़ा , बेरोजगारी, सामाजिक कलंक औरआसन्न मौत के डर में रहते हुए सिंह ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी संभावित कानूनी मंचों पर अपना मामला लड़ा। न्यायालय ने कहा कि सिंह की नयोक्ता उनकी सामाजिक दुर्दशा को दूर करने में असफल रहा।
न्यायालय ने कहा कि ,उनके मामले पर विचार करने और इस तथ्य के मद्देनजर की सेवा में उनकी बहाली अब कोई उपलब्ध विकल्प नहीं हैं। उन्हें हुए मनोवैज्ञानिक ,आर्थिक और शारीरिक आघात को ध्यान में रखते हुए आर्थिक मुआवजा देना उचित लगता है।
पेंशन के हकदार होंगे जो उन्हें सेवा में जारी रहने पर मिलती
पीठ ने कहा ,हम सेवाओं को गलत तरीके से समाप्त करने अवकाश नकदीकरण बकाया ,चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति न करने और सामाजिक अलंकार सामना करने के कारण मुआवजे के रूप में अपील कर्ता को इस फैसले की तारीख से 8 सप्ताह के भीतर 50 लाख रुपए का एक मुस्त मुआवजा देना उचित समझते हैं । न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने बुधवार को कहा कि ,सिंह अतिरिक्त रूप से उसे पेंशन के हकदार होंगे जो उन्हें सेवा में जारी रहने पर मिलती।