उत्तराखंड का वंशी नारायण मंदिर हिमालय की गोद में स्थित एक ऐसा मंदिर है जो अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के कपाट साल में बस सिर्फ एक दिन रक्षाबंधन के दिन खोले जाते हैं । इसी वजह से एक रहस्यमई और पवित्र माना जाता है। इस दिन यहां पर विशेष पूजा और आयोजन होते हैं। मान्यता है की इस दिन यहां आना और पूजा करना विशेष रूप से शुभ होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा करने के लिए दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन यहां की गई पूजा और दर्शन का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है रक्षाबंधन की दिया है।
इस दिन यहां दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगती है
इस दिन यहां दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगती है ।उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी पर मौजूद बंसी नारायण मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव और भगवान नारायण इन दोनों ही देवताओं की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को बंसी नारायण और वंशी नारायण मंदिर, इन दोनों ही नामों से जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर से ऊंचाई केवल 10 फीट ही है यहां के पुजारी हर साल रक्षाबंधन पर खास पूजा अर्चना करते हैं।
गुफा में भक्त प्रसाद बनाने का काम करते है
मंदिर के पास ही एक भालू गुफा भी है इस गुफा में भक्त प्रसाद बनाने का काम करते है रक्षाबंधन के यहां दिन यहां हर घर से मक्खन आता है और इसी प्रसाद मिलकर भगवान को अर्पित किया जाता है। यह मंदिर मानव बस्ती से काफी दूर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है और यहां पहाड़ों की मनमोहक दृश्य दिखाई देते है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए घने ओके के जंगलों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है।
6 से 8वीं शताब्दी के आसपास हुआ था
कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 6 से 8वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। इस मंदिर को लेकर रोचक मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन वंशी नारायण मंदिर में जो भी बहाने अपने भाई को राखी बांधती है सुख ,समृद्धि ,सफलता का आशीर्वाद मिलता है और उनके भाइयों को सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए रक्षाबंधन के दिन यहां बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस दुनिया विशेष पूजा अर्चना की जाती है । पूजा अर्चना के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है शाम को सूरज ढलने के साथ ही मंदिर के कपाट फिर से अगली रक्षाबंधन के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
मंदिर में कपट साल में एक बार रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं
बंसी नारायण मंदिर को लेकर पुरानी कथा जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यही प्रकट हुए थे। माना जाता है कि इसी स्थान पर देव ऋषि नारद ने भगवान नारायण की पूजा अर्चना की थी। तब से मान्यता है कि नारद जी साल के 364 दिन यहां भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना करते हैं और एक दिन के लिए इस कारण चले जाते हैं ताकि भक्तजन भी यहां भगवान नारायण की पूजा कर सके इसी वजह से मंदिर में कपट साल में एक बार रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं।