सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दहेज उत्पीड़न के बढ़ते दुरूपयोग को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में कानून का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी ऐसे समय में आयी है जब सॉफ्टवेयर जब सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी का मामला चर्चा में है।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि दहेज उत्पीड़न जैसे मामलो म बिना ठोस सबूत के पति और उनके परिवार आरोपों को प्राथमिक प्राथमिक स्तर पर ही रोक देना चाहिए।वैवाहिक विवादों में परिवार के सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति पर अदालत ने चिंता व्यक्त की। पीठ में स्पष्ट किया कि अस्पष्ट और सामान्यआरोपों को आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता।
पति से बदला लेने के लिए हो रहा क्रूरता कानून का गलत इस्तेमाल
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 को दहेज उत्पीड़न और क्रूरता रोकने का उद्देश्य से लागू किया गया था । इसका उद्देश्य महिलाओं को त्वरित न्याय प्रदान करना और ससुराल में होने वाले अत्याचारों खत्म करना लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के वर्षों में प्रावधान का दुरुपयोग बढ़ रहा है।
अदालत ने ये कहा कि वैवाहिक विववादो में आईपीसी की धारा 498 A का इस्तेमाल व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने और पति एवं उनके परिवार को परेशान करने के लिए किया जा रहा है। अदालत ने इस प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत पर जोर दिया।
अतुल सुभाष जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे हाल ही में आत्महत्या कर ली उनकी खुदख़ुशी के पीछे उनकी पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज उत्पीड़न आरोपों को को बताया जा रहा है । अदालत ने इस मामले के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए की बिना ठोस सबूत के आरोप लगाना निर्दोष लोगों को मानसिक सामाजिक रूप से प्रभावित करता है।
वैवाहिक विवादों में सावधानी की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का इस्तेमाल किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने के लिए न हो। साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी महिला जो वास्तव में उत्पीड़न का शिकार है, उसे अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है।