भारती मॉस क्रम फाल्गुन ,माह का संवत की महासभा हिन्दु वर्ष का अंतिम महीना अर्थात् बारहवां महीना होता है। इस माह में शीत का प्रकोप कम हो जाता है। वातावरण उल्लासमय। होने लगता है। खेतों में गेहूं ,मटर की फसले पक जाती है और प्रकृति में फाल्गुन की मस्तीव्याप्त होने लगती है जो होली तकचर्मोत्कर्ष पर पहुंच जाती है। फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जानकी व्रत किया जाता है। इसमें जानकी सुत्ता श्री जानकी जी का पूजन होता है।
गुरूवर वशिष्ठ जी की आज्ञा से भगवान रामचन्द्र जी ने समुद्र तट की तपोमय भूमि पर बैठकर यह व्रत किया था।इसमें जो ,चावल,तिल से हवन औरपुए का नैवेध अर्पण किया जाता है। अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए व्रत किया जाता है कुछ वैष्णव ग्रंथो मतानुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है, किन्तु ‘निर्णयसिंधु’ के अनुसार
यथार्थ फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के दिन , श्री रामचंद्र जी की धर्मपत्नी जी की जनक नंदिनी प्रकट हुई थी। इसलिए इस तिथि सीता अष्टमी के नाम से जाना गया है। कहीं-कहीं पर स्त्रियां यह व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष की नवमी को भी रखती हैं।
सीता अष्टमी व्रत की विधि –
सीता अष्टमी के दिन एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाए और उस पर मां लक्ष्मी तथा जानकी की मूर्ति स्थापना करके पुष्पादि से पूजन करें। फिर प्रदोष काल के सामर्थ्य के अनुसार जितना हो सके ,दीपक जलाएं और ब्राह्मणों को भोजन कराये तत्पश्चात स्वयं भोजन करें तथा दूसरे दिन सामग्री योजना आदि किसी ब्राह्मण को दान दे।
सीता जी की कृपा पाने का मंत्र
‘नील सरोरूह नील मनि, नील नीरधर स्याम। लाजहिं तन सोभा निरखि, कोटि-कोटि सत काम।’’
इस मंत्र प्रयोग से सीता देवी प्रसन्न होती है उनकी कृपा से भगवान श्री राम श्री कार्य सिद्ध करा लेते हैक्योंकि जब हम श्रीराम कहते हैं तो इसमें श्री शब्द सीता जी के लिए आता है। जिस प्रकार पार्वती शिव की शक्ति हैं, उसी प्रकार सीता प्रभु राम की शोभा और शक्ति हैं।