इस दिन मनाई जाएगी शीतला अष्टमी ,आखिर क्यों खाते है इस दिन बासी खाना

Saroj kanwar
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सनातन धर्म में शीतला सप्तमी और अष्टमी का विशेष महत्व है। यह हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह त्यौहार एक और दो अप्रैल को मनाया जाएगा। कहते हैं इस दिन दुर्गा और पार्वती मां की अवतार देवी शीतला की पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे बासोड़ा भी कहते हैं।

बासी खाने का क्यों भोग लगाया जाताहैं

शीतला सप्तमी और अष्टमी की पूजा अर्चना करने से रोगो से मुक्ति मिलती है। लेकिन शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन माता को बासी खाने का क्यों भोग लगाया जाता इसके बारे में हम आपको बताते हैं।

कहते हैं शीतला अष्टमी सर्दियों के मौसम खत्म होने का संकेत होता है। इसे मौसम का आखिरी दिन माना जाता है। इसलिए शीतला माता को उस दिन बासी खाने का भोग लगाया जाता है और उसके बाद बासी खाना उचित नहीं माना जाता है। कहते हैं शीतला माता के को बासी खाना का भोग लगाने से वो प्र्शन्न होतोई है और जातकों को निरोग रहने का आशीर्वाद देती है।

शीतला सप्तमी और अष्टमी की पूजा करने से इन बीमारियों की से बचा जा सकता है

गर्मियों के दौरान अधिकतर लोग बुखार ,फुंसी , फोड़े ,नेत्र रोग से परेशान रहते हैं। ऐसे में शीतला सप्तमी और अष्टमी की पूजा करने से इन बीमारियों की से बचा जा सकता है। चैत्र अष्टमी की पूजा के दौरान एक दिन पहले ही पानी में भिगोई चने की दाल माता रानी को अर्पित की जाती है। एक दिन पहले की हलवा ,पूरी ,दही बड़े ,पकोड़े , पुए , रबड़ी जैसे भोग बनाकर रख लिए जाते हैं।

शीतला माता को अर्पित किए हुए जल को पुरे घर में छिड़का जाता है

अगले दिन सुबह महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर ठंडी पानी से स्नान करती है। इसके बाद शीतला माता को इन सभी चीजों का भोग लगाकर परिवार की सुख शांति और समृद्धि की कामना करती है। इस दिन शीतला माता को बासी का भोग लगाने की लगाने के बाद हल्दी के हाथ की पांच-पांच छापे लगते हैं। इसके बाद शीतला माता को अर्पित किए हुए जल को पुरे घर में छिड़का जाता है ऐसा करने से शीतला माता की कृपा बरसाती है।

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