निजी क्षेत्र के पेंशनभोगी आंदोलन के बीच हुए केंद्र सरकार और CBT ट्रस्ट पर नाराज ,कब से कर रहे है पेंशन बढ़ाने की मांग

Saroj kanwar
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कर्मचारी पेंशन योजना 95 पेंशन के अध्यक्ष पेंशन भोगियो का आंदोलन चल रहा है जिसमें निजी क्षेत्र के पेंशनभोगियों की  सरकारी  समर्थन की कमी की निंदा की गयी। सरकारी उपेक्षा राजनीतिकअनदेखी के खिलाफ यह आंदोलन बढ़ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था पेंशन भोगियों की स्थिति एक महत्वपूर्ण संकेत है जो देश की वित्तीय और सामाजिक नीतियों का परिचायक होती है।

आइये जानते हैं इस बारे में और अधिक जानकारी विस्तार से

विशेष रूप से कर्मचारी पेंशन योजना 95 के तहत आने वाले पेंशन भोगी वर्तमान में क्या प्लानव्यापक आंदोलन का हिस्सा है जिसमें उनके मुख्य मांग सरकार से पेंशन की अधिक सहायता और समर्थन के गुहार है तो आईए जानते हैं की पेंशन भोगी की न्यूनतम पेंशन 7500 परपर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, केंद्र सरकार और डीबीटी ट्रस्ट पर क्या अपडेट आया है ।आइये जानते हैं इस बारे में और अधिक जानकारी विस्तार से।

अपनी निजी क्षेत्र की पेंशन भोगी के लिए वित्तीय जाल बिछाने का वादा किया था

1995 में शुरू की गई कि कर्मचारी पेंशन योजना अपने अपनी निजी क्षेत्र की पेंशन भोगी के लिए वित्तीय जाल बिछाने का वादा किया था। लेकिन समय के साथ उन्होंने व्यवस्था अपर्याप्त साबित हुई है। खासकर जब यह सरकारी कर्मचारियों की पेंशन लाभों के साथ तुलना की जाती है। आंदोलन का मुख्य बिंदु यह है कि सरकारी कर्मचारियों का 50% की पेंशन सुविधा प्राप्त होती है जबकि निजी क्षेत्र की पेंशन भोगी इस समर्थन से वर्जित है।

यह एक बड़ी व्यापक साजिश का हिस्सा भी हो सकती है

आंदोलन की गहराई में जाने पर स्पष्ट होता है कि राजनीतिक समर्थन में की कमी में अपने पेंशनर्स के मुद्दे को और जटिल बना दिया है। पेंशन भोगियों का आरोप है कि उनकी जरूरत को राजनीतिक दलों के द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है जिसके पीछे आर्थिक और राजनीतिक स्वार्थ शामिल है। सीपी तिवारी जैसे प्रमुख सदस्यों का मानना है कि यह उपेक्षा न केवल उनके अधिकारों का हनन है बल्कि यह एक बड़ी व्यापक साजिश का हिस्सा भी हो सकती है।

फंड्स का उपयोग उनके हित में नहीं किया जा रहा है

सरकार द्वारा उठाए गए कदम आसमान और गैर लोकतांत्रिक प्रतीत होते हैं जिसमें निजी क्षेत्र की पेंशन भोगी की अपेक्षा की गई है। इस भेदभावपूर्ण व्यवहार में पेंशनर्स की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। वर्षों से चली आ रही लड़ाई में संसद और सरकारी संस्थाओं की अपेक्षा ने पेंशनर्स को उनके हितों के लिए अधिक मुखर होने को मजबूर किया। दशक से जमा किए गए उनके फंड्स का उपयोग उनके हित में नहीं किया जा रहा है।

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