Outsource Employees News: मध्यप्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारी लंबे समय से ठेकेदारी प्रथा के कारण शोषण का सामना कर रहे हैं। राज्य में इन कर्मचारियों के लिए अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बनी है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में “आउटसोर्स सेवा निगम” का गठन कर वहां के कर्मचारियों को न्यूनतम ₹20,000 वेतन और अन्य सुविधाएं देना शुरू किया है। अब मध्यप्रदेश में भी ऐसी व्यवस्था की मांग तेज हो गई है।
कर्मचारियों की बढ़ती संख्या
प्रदेश में लगभग 2 लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनमें से करीब 50 हजार ऐसे हैं जिन्हें विभाग जरूरत के हिसाब से अस्थायी तौर पर रखते हैं। इन कर्मचारियों को न तो सरकारी सुविधाएं मिल रही हैं और न ही पीएफ, ग्रेच्युटी और स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। कई बार तो 5 से 6 महीने तक वेतन भी नहीं मिलता।
ठोस नीति की मांग
मप्र संविदा आउटसोर्स स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष कोमल सिंह का कहना है कि राज्य सरकार ने इन कर्मचारियों के लिए कोई नियम तय नहीं किए हैं। जिलों में निजी एजेंसियों के जरिए अनुबंध किए जाते हैं, जिससे कर्मचारियों का सीधा शोषण होता है। श्रम विभाग द्वारा निर्धारित दर के अनुसार वेतन न देकर केवल 60 से 70 प्रतिशत राशि ही दी जाती है। न ईपीएफ का सही कटौती होती है और न वेतन समय पर मिलता है।
अन्य राज्यों का उदाहरण
आउटसोर्स कर्मचारियों के संगठनों का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और आंध्र प्रदेश की तर्ज पर कदम उठाने चाहिए। यूपी में जहां आउटसोर्स सेवा निगम बनाया गया है, वहीं हरियाणा में कौशल रोजगार निगम और आंध्र प्रदेश में सेवा निगम की व्यवस्था है। इन राज्यों में कर्मचारियों को नियमित वेतन और सुविधाएं मिल रही हैं, जबकि मध्यप्रदेश में यह सुविधा नहीं है।
न्यूनतम वेतन की मांग
आउटसोर्स कर्मचारियों का कहना है कि वर्तमान महंगाई को देखते हुए न्यूनतम वेतन कम से कम ₹20,000 होना चाहिए। फिलहाल इन्हें केवल ₹10,000 से ₹13,000 तक ही वेतन दिया जाता है। न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 3 के तहत हर 5 साल में वेतन रिवाइज होना चाहिए, लेकिन प्रदेश में यह प्रक्रिया 8 से 9 साल बाद होती है।
सरकार पर दबाव बढ़ा
कर्मचारियों ने स्पष्ट कहा है कि वे लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं और अब सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अगर आउटसोर्स सेवा निगम जैसी व्यवस्था लागू होती है तो कर्मचारियों को समय पर वेतन और अन्य सुविधाएं मिल सकेंगी। इससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी और शोषण पर भी रोक लगेगी।