हर साल भाद्रपद्र माह की पूर्णिमा से पितृ पक्ष पक्ष की ओर शुरुआत होती है जो अश्विन तिथि की अमावस्या की तिथि पर समाप्त होती है। पितृपक्ष का आखिरी दिन सर्व पितृ अमावस्या के रूप में मनाया जाता है । पितरों को श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि पितरों की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में पितर पक्ष की अवधि महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय पितरों के लिए श्राद्ध ,तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
कार्यों के माध्यम से पितरों को मुक्त की प्राप्ति होती है
मान्यता है कि इन कार्यों के माध्यम से पितरों को मुक्त की प्राप्ति होती है और साधक को उनकी कृपा का आशीर्वाद मिलता है। पितृपक्ष के अंतिम दिन को सर्व पितृ अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस दिन उन व्यक्तियों को श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि हम भूल चुके हैं या फिर किसी अन्य कारण श्राद्ध और तर्पण करने में असमर्थ रहते हैं। यहां जानते तर्पण की विधि।
पंचांग के अनुसार ,अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को रात 9:30 बजे शुरू होगी और 3 अक्टूबर को रात 12:18 समाप्त होगी। इस तरह सर्वपितृ अमावस्या क 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
तर्पण की विधि
सर्वपितृ अमावस्या के दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय पूर्वजों का तर्पण करते समय दक्षिण दिशा की और मुख करें। तर्पण जौ, कुश, और काले तिल का प्रयोग करें। पितरो की शांति के लिए मंत्रो का जाप करें। फिर उत्तर दिशा की ओर मुख करके जो और कुश से मानव तर्पण करे। अंत में गरीबों का दान करें और उन्हें भोजन कराये।
पितृ के लिए विशेष मंत्र
ॐ पितृ देवताओं को नमस्कार।
ॐ, मेरे पितर आएं और जल अंजलि स्वीकार करें।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
ॐ पितृगणों को विद्यमान करते हैं, जगत का धारण करने वाले, तन्नो पितृों को प्रचोदयें।
ॐ देवताओं और पितरों को, महायोगियों को,
नम: स्वाहा, स्वधायै, नित्यमेव नमो नम:।