दुनिया क्लाइमेट चेंज की वजह से बढ़ते तापमान के विनाशकारी प्रभाव का अनुभव कर रही है। जनवरी 2022 लगातार दूसरा महीना है जब वैश्विक तापमान सामान्य स्तर से ऊपर रहा। वास्तव में से इससे पहली बार वैश्विक औसत तापमान डेढ़ डिग्री से ऊपर चला गया। हालाँकि एक दशक से भी पहले दुनिया ने एक पुरे सागर को गायब होते देखा था। इस वाटर बॉडी को ‘अरल सागर’ कहा जाता था जो कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच भूमि से घिरी झील थी जो 2010 तक काफी हद तक सूख गई थी।
अरल सागर दुनिया में इनलैंड वाटर का चौथा सबसे बड़ा भंडार था
68000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ अरल सागर दुनिया में इनलैंड वाटर का चौथा सबसे बड़ा भंडार था। 1960 के दशक में जब यह सिकुड़ना शुरू हुआ जब सोवियत सिंचाई परियोजना के लिए इसे पानी देने वाली नदियों का रुख मोड़ दिया गया। नासा की अर्थ ऑब्जर्वेटरी ने अरब सागर के गायब होने के कारण का विस्तृत विश्लेषण पोस्ट किया।
1960 के दशक में सोवियत संघ ने सिंचाई के उद्देश्य से कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के शुष्क मैदाने पर एक प्रमुख जल मोड़ परियोजना शुरू की। क्षेत्र की दो प्रमुख नदियां ,उत्तर में सीर दरिया और दक्षिण में अमु दरिया का इस्तेमाल रेगिस्तान को कपास और अन्य फसलों के लिए खेती में बदलने के लिए किया गया था।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका ने कहा कि अरल सागर का निर्मा णनिओजीन कालके अंत में हुआ था। जब दोनों नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया और अंतर्देशीय झील में उच्च जल स्तर बनाए रखा।
ऐसे हुआ था सागर का निर्माण
अपने चरम पर अरल सागर उत्तर से दक्षिण तक लगभग 270 मील और पूर्व से पश्चिम तक 180 मील से अधिक फैला हुआ था। लेकिन खेतों के निर्माण के लिए नदियों के पानी को मोड़ने के बाद पानी कम हो गया और पूरा समुद्र वाष्पिक हो गया। झील के कुछ हिस्सों को बचाने के आखिरी प्रयास में कजाकिस्तान ने अरब सागर के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों के बीच एक बांध बनाया। लेकिन अब जल स्तर को उसके पूर्ण गौरव पर बहाल करना लगभग नामुमकिन है।