हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2023 तक प्रदेश को जहर मुक्त खेती में तब्दील करने का लक्ष्य रखा है। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नए साल 2018 में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीकी की शुरुआत हुई। तकनीक के बेहतर परिवारों में परिणाम होने किसानों को रासायनिक खेती छोड़ने के लिए प्रेरित किया।
प्राकृतिक खेती में भारतीय नस्ल की गाय का विशेष महत्व है। देशी गाय के गोबर में मौजूद तीन से पांच करोड़ जीवाणु मिट्टी की उर्वरकों को बढ़ाने में मदद करते हैं। एक देसी गाय की गोबर से 30 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकती है जबकि जैविक पद्धति में इतनी ही खेती के लिए 30 गायों की जरूरत होती है।
सरकार की सब्सिडी योजनाएं
हिमाचल प्रदेश सरकार किसानों को देसी गाय खरीदने के लिए ₹25000 की सब्सिडी दे रही है। इसके अलावा ट्रांसपोर्टेशन के लिए ₹5000 गौशाला में पक्का फर्श बनाने के लिए ₹8000 की सहायता दी जा रही है। किसानों को साइकिल हेलो ड्रम खरीदने पर भी सब्सिडी जा रही है।
प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग
प्राकृतिक खेती में जीवामृत और घन जीवामृत में जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। इन उर्वरको को गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल का बेसन और पेड़ों के नीचे की मिट्टी से तैयार किया जाता है यह उर्वरक मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने और सूक्ष्म जीवों को सक्रिय करने में मदद करते हैं। रासायनिक कीटनाशकों की जगह प्राकृतिक खेती में गोबर ,गोमूत्र ,तंबाकू ,लहसुन और मिर्च के पत्तों से कीटनाशक तैयार किए जाते हैं। इन दवाओं का छिड़कावोंफसलों की कीट और बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है।
35 हजार हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती
साल 2018 में प्राकृतिक खेती की तकनीक हिमाचल प्रदेश में 628 हेक्टेयर क्षेत्र में शुरू हुई थी. अब यह क्षेत्र बढ़कर 35,004 हेक्टेयर हो गया है. किसान इस पद्धति को अपनाकर रासायनिक खेती से दूर जा रहे हैं।
हिमाचल में देशी गायों का संरक्षण और प्रोत्साहन
सरकार ने देसी गायों के संरक्षण और उपयोगिता को बढ़ाने के लिए कई योजना चलाई है। साहिवाल ,गिर ,रेड ,सिंधी और हिमाचल की लोकल नस्लों को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे न केवल प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि देशी नस्लों का संरक्षण भी होगा