अब बैंको से कर्ज लेकर लोग को भागना पड़ सकता है महंगा ,RBI ने लागू किया ये बड़ा नियम

Saroj kanwar
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भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में जानबूझकर ऋण ना चुकाने वालों की समस्या से निपटने के लिए बड़े कदम उठाए हैं। ये ऐसे कर्जदार है जो भुगतान करने की क्षमता होने के बावजूद जानबूझकर भी चुकाने से बचते हैं। इन उपायों का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र में वित्तीय अनुशासन को बढ़ाना और गैर -निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करना है।

जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों की पहचान और वर्गीकरण

नई दिशा निर्देशों के अनुसार ,यदि किसी उधारकर्ता है के खातों को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया किया जाता है जो तो बैंकों को 6 महीने के भीतर उधारकर्ता को मूल्यांकन करके उसे बिल्कुल डिफाल्टर के रूप में नामित करना होगा। । यह वर्गीकरण उन व्यक्तियों या संस्थाओं पर लागू होता है जो
चुकाने का साधन तो है लेकिन जानबूझकर भुगतान से बचते हैं।
उधर ली गई धनराशि का अनुचित उपयोग करना।
सहमत उद्देश्य से हटकर धनराशि का उपयोग करना।

एक बार जानबूझकर चूक करता घोषित कर दिए जाने पर व्यक्ति या संस्था का कई महत्वपूर्ण प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है जिनमें नए ऋण के लिए अयोग्यता और ऋण पुनर्गठन के अवसरों पर अवसरों से वंचित होना शामिल है।

नये दिशा-निर्देशों के प्रमुख प्रावधान

त्वरित कार्यवाही समय सीमा –बैंकों को किसी खाते के एनपीए बनने की 6 महीने के भीतर जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों की पहचान करनी हो होगी और उन्हें चिन्हित करना होगा।

बड़े उधारकर्ताओं पर ध्यान – दो पॉइंट पांच मिलियन से अधिक ऋणों पर विशेष ध्यान दे ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि बड़े चूककर्ताओं को तुरंत समाधान किया जाए।
समीक्षा समितियां की स्थापना -उधारकर्ताओं की समीक्षा समिति के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए 15 दिन तक की अवधि दी जाती है। जिससे निष्पक्ष मूल्यांकन प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
एनबीएफसी प्रयोज्यता -ये विनियमन प्रारंभिक बैंकों से आगे बढ़कर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को विश्व शामिल करते हैं जिससे वित्तीय क्षेत्र में परिवर्तन का दायरा व्यापक हो जाता है।

जानबूझकर के चूक कर्ता घोषित किये जाने के परिणाम

भविष्य में ऋण से इनकार – बैंको और वित्तीय संस्थानों से नई ऋण सुविधाओं तक पहुंच चुके प्रतिबंधित हो जाती है।
ऋण पुनर्गठन के लिए अयोग्यता – चूककर्ता ऋण शर्तो और पुनः बातचीत करने का विशेष अधिकार खो देते हैं जिससे वित्तीय चुनौतियां और बढ़ जाती है।
व्यावसायिक परिचालन पर प्रतिकूल प्रभाव –चूककर्ता की ऋण-योग्यता को गंभीर नुकसान पहुंचता है, जिससे व्यावसायिक संभावनाओं और साझेदारी में बाधा उत्पन्न होती है।

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