पुराणों में मार्गशीष का महीना में श्रेष्ठ माना गया। इस महीने को स्वयं श्री कृष्ण का स्वरूप माना गया। वाराणसी इस माह की पूर्णिमा का महत्व है। यदि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है। अगर महीना के दिन पवित्र नदियों में स्नान , व्रत और दान पुण्य करने के अलावा चंद्रमा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
शुभ मुहूर्त और इस दिन चंद्र देव की पूजा का महत्व
मान्यता है की इस दिन चंद्रमा को अमृत से सींचा गया था। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वालों को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है। यहां जानते हैंमार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त और इस दिन चंद्र देव की पूजा का महत्व।।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत 15 दिसंबर से 2002 को रखा जाएगा। इस दिन त्रिपुर भैरवी जयंती में मनाई जाएगी हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 14 दिसंबर 2021 को शाम 4: 58 मिनट से शुरू होकर और अगले दिन 15 दिसंबर 2024 को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओ से सुसज्जित होगा
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओ से सुसज्जित होगा। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की जड़ से मिट्टी से किसी पवित्र नदी या उसके जल में स्नान करना चाहिए इसे सभी पाल पाप धूल जाते हैं। इसे मोक्षदायिनी पूर्णिमा भी कहते हैं । कहा जाता है की इस दिन किया गया दान अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में 32 गुना अधिक फल देता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते हैं।
मार्गशीर्ष महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा को दूध चढ़ाने से मानसिक शांति का वरदान मिलता है। चंद्र देव की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। सभी परेशानियां दूर होती हैं और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के बाद कच्चे दूध में मिश्री और चावल मिलाकर चंद्रदेव को अर्घ्य दें।