Lord Shiva: भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है ये सांप, ये है इसके पीछे की कहानी 

Saroj kanwar
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Lord Shiva : देश में बच्चा से लेकर बूढ़े भी भगवान शिव के भक्त है. सावन के महीने में लोग शिव जी की कांवड लेने हरिद्वार जाते है. गंगाजल लाने के बाद शिवलिंग पर इसे अर्पित करते है. कुछ लोग तो सावन के महीने में भगवान शिव के व्रत भी रखते है.

क्या आप लोगों को पता है कि भगवान शिव के गले में कौन सा सांप लिपटा रहता है? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको बताते है. भगवान शंकर के गले में वासुकी नामक सांप लिपटा रहता है. माना जाता है कि वासुकी को नागों का राजा होता है.

कई ग्रथों में बताया गया है कि शिव जी के गले में सांप होने से उनके  संन्यासी और तपस्वी का रूप माना जाता है. पुराणों में बताया गया है कि वासुकी और भगवान शंकर का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है. देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया था.

समुद्र मंथन करने के लिए मंदार पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था. समुद्र मंथन के दौरान वासुकी को बहुत कष्ट हुआ था. समुद्र मंथन के समय उसमें से भयंकर विष निकला था, जो पूरी  सृष्टि का विनाश कर सकता था.

उस समय भगवान शिव ने उस विष को अपने गले में अटका लिया था. विष पीने के कारण शिव जी का गला नीला पड़ गया था, जिसके बाद से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. भगवान शंकर के इस काम वासुकी बहुत प्रभावित हुए, उसके बाद खुद को शंकर की सेवा में समर्पित कर दिया.

भगवान शंकर ने उन्हें अपने गले में आभूषण की तरह धारण कर लिया. कहा जाता है कि वासुकी का भगवान शंकर के गले में होना केवल एक शारीरिक आभूषण नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थों का प्रतीक भी है.

ग्रंथों में बताया गया है कि वासुकी ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू के पुत्र थे, जो नागों की माता थीं. बताया जाता है कि वासुकी का रूप बहुत ही विशाल और भव्य था.

उन्हें हजारों फनों वाला सांप भी कहा जाता है. वासुकी के फनों पर रत्नों से सुशोभित थे. वासुकी कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं. वासुकी अमर और बहुत शक्तिशाली नाग थे.

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