सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से संपत्तियों को समुदाय की भौतिक संसाधन मैंने और राज्य द्वारा सार्वजनिक भलाई के लिए अधिग्रहित करने के अधिकार पर महत्वपूर्ण रोक लगाई है। नौ न्यायाधीश की संविधान पीठ के ने 7:2 के बहुमत से कहा कीकि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल कुछ खास परिस्थितियों में ही राज्य प्राइवेट प्रॉपर्टी को अपने अधिकार में ले सकता है।
संपत्ति का समुदाय का संसाधन मानने के लिए उसे कुछ विशेष परीक्षणों को पार करना होगा
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद (बी) और 31सी की व्याख्या के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है। यह फैसला महाराष्ट्र के मामले से संबंधित है जिसमें प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य का विषय शामिल था। अदालत ने कहा कि ,किसी निजी स्वामित्व वाली संपत्ति का समुदाय का संसाधन मानने के लिए उसे कुछ विशेष परीक्षणों को पार करना होगा।
जस्टिस चंद्र चूड ने कहा की केवल इसलिए किसी संपत्ति को सार्वजनिक भलाई के लिए आवश्यक नहीं माना जा सकता क्योंकि भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करती है। ऐसे मामलों में संसाधन की प्रकृति ,उसकी उपयोग की विशेषता और समुदाय पर उसके प्रभाव जैसे पहलुओं का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या
संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत संसाधनों की परिभाषा पर अदालत में महत्वपूर्ण टिप्पणी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संसाधन की प्रकृति उसकी कमी और उसके निजी स्वामित्व में केंद्रित होने के प्रभाव पर विचार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ‘पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत’ का जिक्र करते हुए संसाधनों की पहचान में मददगार बताया।
जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस धूलिया के अलग विचार
जहां जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने बहुमत से आंशिक सहमति जताई, वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इससे असहमति जताई। उन्होंने कहा कि संसाधनों को नियंत्रित और वितरित करना संसद का विशेषाधिकार है, और न्यायालय द्वारा इसे परिभाषित करना उचित नहीं है।