आज के पेरेंट्स बच्चों के रोने पर या फिर काम करने के लिए बच्चों के हाथों में मोबाईल थमा देते है। इससे कुछ देर के लिए शांत हो सकता है। सबसे आसान तरीका हो गया ये बच्चों के रोने ,गुस्से और जिद को शांत करने का। लेकिन हाल ही में सामने आया की बच्चों में स्क्रीन देखने के लिए का कारण बनती है। जी हां आपने बिल्कुल सही सुना।
मस्तिष्क का विकास होता है
दरअसल स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक डेवलपमेंट डिसेबिलिटी है जो बच्चों में सामाजिक होने ,बातचीत करने और व्यवहार संबंधी चुनौतियां पैदा करने के लिए जान जाती है। प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। आपको बता दे की बचपन ही वह समय होता है जब मस्तिष्क का विकास होता है। यह वही समय है जब बच्चे दूसरों को देखकर ही अपने आसपास की वातावरण से चीज़ सीखते हैं इसलिए अपने माता-पिता को अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए ताकि वह मन बहलाने के लिए मोबाइल का सहारा ना ले।
भाषाई विकास में कमी और अन्य समस्याएं होतीहै
हाल के क्लीनिकल केस के अध्ययनों के अनुसार , कोई छोटे बच्चे जो टीवी ,वीडियो गेम कंसोल ,आईपेड या कंप्यूटर सहित स्क्रीन के सामने बहुत अधिक समय बिताते है तो उनमे ऑटिज्म के लक्षण हो सकते है। पिछली पीढ़ियों के तुलना में आजकल बच्चों की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक पहुंच ज्यादा है। कुछ अध्ययनों में संकेत मिलता है कि बढ़ा हुआ स्क्रीन समय मेलानोप्सिन-संचार करने वाले न्यूरॉन्स और गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड न्यूरोट्रांसमीटर में कमी से जुड़ा है जिससेअसामान्य व्यवहार व्यवहार मानसिक और भाषाई विकास में कमी और अन्य समस्याएं होती है।