Cheque Bounce : चेक बाउंस होने पर किस धारा के तहत मिलती है सजा, क्या हो सकती है जेल, जानिए नियम-कानून

Saroj kanwar
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देश में से कोई व्यक्ति नहीं है जिसने विकी बैंक में खाता ना खुलवा रखा हो। आजकल लोग अपने बच्चों का भी बैंक में खाता खुलवाते हैं। बैंक में खाता खुलवाने के साथ ही आपको कोई सुविधा मिलती है या आप इन्हें खुद ले सकते हैं इनमें एटीएम कार्ड ,पासबुक और चेक बुक जैसी सुविधाएं हैं। बैंक में जब आप खाता खुलवाते हैं तो आपको इसके साथ ही सभी नियमों के बारे में जान लेना जरूरी है ताकि आगे चलकर आप किसी परेशानी में फंसे।

अगर आप चेक बुक का इस्तेमाल करते हैं तो चेक जारी करने से लेकर हर चीज के बारे में आपको पता होना चाहिए । चेक बाउंस के बारे में आपने सुना होगा।

चेक बाउंस होता क्या है

सबसे पहले ये जाने की चेक बाउंस होना क्या होता है। चेक बाउंस का मतलब है की आपने किसी व्यक्ति को ₹10000 का चेक साइन किया वह व्यक्ति अपने बैंक में गया और वह रकम अपने खाते में डलवाने के लिए चेक लगा दिया। बैंक ने पाया की जिस व्यक्ति ने आपको चेक दिया है उसके खाते में ₹10000 है ही नहीं है ऐसे में जिससे पैसा मिलना चाहिए उसे नहीं मिला और बैंक को अलग से मैन पावर लगानी पड़ेगी।
इस तरह के चेक रिजेक्ट होने हो जाने कोई चेक बाउंस कहते हैं। ऐसे में आप ध्यान रखें जब भी चेक काटे तो तो अपने अकाउंट में मौजूद रकम से कम कटे अगर चेक बाउंस हुआ तो उसके लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है। क्योंकि भारत में चेक बाउंस होने का वित्तीय अपराध माना गया है।

लगती है कोनसी धारा

आपकी जानकारी के लिए बता दें की चेक बाउंस का परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता है। वैसे भी चेक बाउंस के मामले आए दिन सामने आते और अदालतों में इस तरह की केस लगातार बढ़ने लगे हैं। इससे जुड़े ज्यादा मामलों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दी जाती है। चेक अमाउंट की बहुत काम केस ऐसे होते हैं जिनमें अभियुक्त बरी किए जाते हैं। इसलिए जानना बहुत जरूरी है कि मामले में क्या कानूनी प्रावधान है।

किस धारा के तहत चलता है केस

जारी रिपोटर्स के अनुसार, चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (Negotiable Instruments Act in case of check bounce) ,1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है। हालांकि, सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है। इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 ( के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है। प्रतिकर की यह रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है।

चेक बाउंस होने पर मिलती है कौनसी सजा

आपको जानना जरूरी है कि चेक बाउंस का अपराध 7 वर्ष से काम की सजा का प्रावधान है। इसलिए प्राइस अपराध की जमानती अपराध बना दिया है। इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसला तक अभी जेल नहीं होती है।अभियुक्त के पास अधिकार होते हैं कि वह आखिरी निर्णय तक जेल जाने से बच सके । चेक बाउंस केस में अभ्युक्त सजा को निलंबित की जाने के लिए गुहार ले सकता लगा सकता है। इसके लिए ट्रायल कोर्ट में के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अंतर्गत आवेदन पेश कर सकता है।
चूंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस (cheque bounce rules) के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के तहत सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।

केवल इतना ही नही, चेक बाउंस केस में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट ,1881 की धारा 139 में 2019 में अंतरिम प्रतिकर जैसे प्रावधान जोड़े गए। इसमें अभियुक्त को पहली बार अदालत के सामने उपस्थित होने पर परिवादी को चेक राशि की 20 प्रतिशत रकम दिए जाने के प्रावधान है। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने इसे बदल कर अपील के समय अंतरिम प्रतिकर दिलवाए जाने के प्रावधान (punishment on cheque bounce) के रूप में कर दिया है। अगर अभियुक्त की अपील स्वीकार हो जाती है तब अभियुक्त को यह राशि वापस दिलवाई जाती है।

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