हमारे देश में प्रॉपर्टी को किराए पर देने की प्रक्रिया कई कानूनी नियम और प्रक्रिया शामिल है। नियमों का पालन केवल मकान मालिक को सुरक्षित रखता है बल्कि किराएदार को भी अपने अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है। जब बात आती है किराएदार 12 साल तक संपत्ति पर रहता है मकान का मालिक बन सकता है तो यह जटिल प्रक्रिया हो सकती है। लेकिन ऐसा हो सकता है ।
इस लेख में हम आपको प्रॉपर्टी किराए पर देने के नियमों और इस संबंध में आवश्यक कागजी कार्रवाई के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
प्रॉपर्टी किराये पर देने से पहले ,मकान मालिक और किराएदार के बीच एक स्पष्ट और लिखित किरायेदारी अनुबंध का होना अनिवार्य है। इस अनुबंध में किराए की राशि, भुगतान की विधि, किराए की अवधि, संपत्ति की मरम्मत और रख-रखाव की जिम्मेदारी, और अन्य शर्तें स्पष्ट रूप से उल्लेखित होनी चाहिए। यह अनुबंध दोनों पक्षों के अधिकारोंऔर कर्तव्यों को स्पष्ट करता है ताकि भविष्य में किसी प्रकार का विवाद ना हो।
किराए पर देने के दौरान मकान मालिक के अधिकारों की रक्षा करना भी महत्वपूर्ण है।
मकान मालिक को यह अधिकार होता है कि वह समय-समय किराया बढ़ा सकता है लेकिन यह वृद्धि राज्य के नियमों के अनुसार होनी चाहिए।
किराएदार कैसे बन सकता है मालिक?
भारतीय कानून के तहतअगर किरायेदार ने संपत्ति को एक निश्चित समय तक कब्जे में रखा है जब और मकान मालिक ने इसे वापस लेने की कोशिश नहीं की तो कुछ विशेष स्थिति में किराएदार को संपत्ति का मालिक बनने का अधिकार मिल सकता है। इइस प्रक्रिया को “Adverse Possession” (विपरीत कब्जा) कहा जाता है।
“Adverse Possession” का मतलब है अगर कोई व्यक्ति बिना मालिक की अनुमति के किसी संपत्ति पर कब्जा करता और यह कब्जा कई वर्षों तक बिना किसी रुकावट के जारी रहता है, तो उसे उस संपत्ति पर मालिकाना हक मिल सकता है। यह अधिकार सामान्यत: 12 साल तक की अवधि में प्राप्त हो सकता है, यह अधिकार सामान्य द 12 साल तक की अवधि में प्राप्त हो सकता है। यदि मकान मालिक ने अपने अधिकार का दावा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
Adverse Possession के नियम और शर्तें
विपरीत कब्जा (Adverse Possession) का दावा करने के लिए कुछ विशेष शर्तो का पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले कब्जा सार्वजनिक और स्पष्ट बिना किसी बाधा के होना चाहिए इसके साथ ही, कब्जे की अवधि 12 साल (या कुछ मामलों में 30 साल, राज्य कानून के आधार पर) तक पूरी होनी चाहिए।
किरायेदारी से संबंधित कानूनी विवाद
किरायेदार और मकान मालिक के बीच विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि किराए की राशि, मरम्मत की जिम्मेदारी, या संपत्ति का कब्जा। ऐसे मामलों में, दोनों पक्षों को न्यायालय की मदद लेनी पड़ सकती है। अदालत में मामला जाने से पहले, किरायेदार को यह अधिकार प्राप्त करना होगा कि वह अपने अधिकारों की रक्षा कर सके।
कुछ राज्यों में रेंट कंट्रोल एक्ट (Rent Control Act) लागू होते हैं, जो किरायेदार और मकान मालिक के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं और अनुशासन लाते हैं। इन एक्ट्स के तहत, किरायेदार को न केवल सुरक्षित रहने का अधिकार होता है, बल्कि वह यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि मकान मालिक ने जो भी किराए का निर्धारण किया है, वह उचित है।