आखिर राजा जनक ने अयोध्या क्यों नहीं भेजा था सीता के स्वयंवर का न्यौता ,यहां जाने क्या था इसका कारण

Saroj kanwar
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राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य समारोह शुरू हो चुका है। प्राण प्रतिष्ठा का हर दिन अलग-अलग स्थान का आयोजन किया जाएगा। समारोह शुरू होने से देश-विदेश पर से राम लला के लिए ढेरो उपहार आये है। इसी क्रम में भगवान राम के ससुराल जनकपुरी से भी उपहार आये थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजा जनक ने सीता स्वयंवर का नियंत्रण अयोध्या नहीं भेजा था। अयोध्या निमंत्रण नहीं भेजने की वजह क्या थी अगर निमंत्रण नहीं भेजा गया था तो भगवान राम जनकपुरी पहुंचकर सीता स्वयंवर में शामिल कैसे हुए।

भेजने का कारण राजा जनक का बड़ा डर था


सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजने का कारण राजा जनक का बड़ा डर था। पुरानी कथाओं के अनुसार इसका जिक्र मिलता है। पुरानी कथाओं के अनुसार ,जनकपुरी में एक व्यक्ति की शादी में पहली बार ससुराल जा रहा था उसे ससुराल के रास्ते में एक दलदल मिला दलदल में गाय फंसी हुई थी जो करीब-करीब मरने वाली थी। उसने सोचा कि गाय तो मरने वाली है और कीचड़ में जाने पर कपड़े खराब हो जाएंगे। वह भी दलदल में फंस भी सकता है।

इसलिए गाय के ऊपर पैर रखकर आगे निकल गया। जैसे ही उसने दलदल को पार किया गाय ने दम तोड़ दिया और व्यक्ति को श्राप दिया कि तू जिसके लिए मुझे मरता हुआ छोड़कर जा रहा है उसे नहीं देख पाएगा। जैसे से देखेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। ससुराल पहुंचकर व्यक्ति घर की तरफ पीठ करके दरवाजे के बाहरी बाहर ही बैठ गया।

पत्नी ने कहा में पतिव्रता स्त्री हूं

ससुराल के लोगों की तमाम को कोशिशों के बाद भी वह अंदर नहीं गया। इस पर उसकी पत्नी ने घर की बाहर आकर उसे अंदर चलने को कहा। लेकिन व्यक्ति ने श्राप के डर से उसकी तरफ देखा ही नहीं। इस पर पत्नी ने इसके कारण पूछा तो उसने गाय के श्राप के बारे में बताया। इस पर पत्नी ने कहा में पतिव्रता स्त्री हूं आप मेरी तरफ देखो मुझे कुछ नहीं होगा ,फिर व्यक्ति ने जैसे ही पत्नी की तरफ देखा उसकी आंखों की रोशनी चली गई। वह स्त्री अपने पति को लेकर राजा जनक के दरबार में गई।

राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को बुलाकर समस्या बताई

उसने राजा जनक को पूरी बात बताई। फिर राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को बुलाकर समस्या बताई और जो श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। सभी विद्वान ने आपस से बातचीत करने की बात कहा कि व्यक्ति की पत्नी को छोड़कर अगर कोई दूसरी पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लाकर उसके छींटे आंखों पर लगाए तो श्राप आपसे मुक्ति मिल जाएगी। जब यह सूचना अयोध्या के राजा को मिली तो उन्होंने अपनी सभी रानियां से पूछा इस पर सभी रानियां ने कहा कि राजमहलतो क्या आप राज्य के किसी भी महिला से पूछेंगे वह तो अभी पतिव्रता मिलेगी।

अयोध्या से ही महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई

राजा दशरथ नहीं सफाई वाली को बुलाया पूछे जाने पर महिला ने कहा कि वह पतिव्रता स्त्री है। महाराज दशरथ ने राजा जनक के समेत सभी राजाओं को दिखाने के लिए इस महिला को जनकपुरी भेजा कि उनके राज्य सबसे उत्तम में राजा जनक ने अभी उसे महिला का बहुत सम्मान किया। अयोध्या से ही महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की ,हे गंगा मैया अगर में पूर्ण पतिव्रता हूं तो गंगाजल की एक बून्द भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए। प्रार्थना करके उसने गंगाजल को छलनी में भर लिया और राजा दरबार पहुंच गई। महिला व्यक्ति की आंखों पर छींटे मारे तो उसकी रोशनी लौट आई। राजा जनक ने राज सम्मान देकर उसे अयोध्या विदा कर दिया।

सीता स्वयंवर के समय राजा जनक को सफाई वाली महिला का ध्यान आया तो उन्होंने सोचा कि उन्‍होंने सोचा कि इतनी पतिव्रता महिला का पति कितना शक्तिशाली होगा। अगर राजा दशरथ ने सोचा इसी तरह किसी द्वारपाल या सैनिकों स्वयंवर में भेज दिया तो वह धनुष को आसानी से उठा लेगा। ऐसे में राजकुमारी का किसी राजकुमार क बजाय किसी सैनिक या द्वारपाल से हो जाएगा इसी डर के कारण राजा जनक ने सीता का स्वयंवर नियंत्रण अयोध्या नहीं भेजा था।

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