MP News: मप्र में अब गरीबों को कानूनी मदद सिर्फ राष्ट्रीय कानून से मिलेगी, सरकार ने 49 साल पुराना राज्य कानून किया खत्म

Saroj kanwar
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MP News: मध्यप्रदेश में अब गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी मदद सिर्फ राष्ट्रीय कानून के तहत ही मिलेगी। राज्य सरकार ने 49 साल पुराना 1976 में बना मध्यप्रदेश समाज के कमजोर वर्गों के लिए विधिक सहायता तथा विधिक सलाह अधिनियम को निरस्त कर दिया है। इस कानून के जरिए अलग से राज्य बोर्ड और जिला स्तर पर समितियां गठित की जाती थीं, जो पात्र लोगों को वकील और खर्च मुहैया कराती थीं। लेकिन 1987 में राष्ट्रीय कानून आने के बाद दोहरी व्यवस्था बन गई थी और धीरे-धीरे राज्य कानून महज कागजों तक सीमित रह गया। पुराने कानून से बेवजह की कागजी झंझट और अलग ढांचा बनाए रखने की मजबूरी थी, इसलिए अब इसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।

अब गरीब को कैसे मिलेगी कानूनी सहायता

अब पूरी व्यवस्था लीगल सर्विस अथॉरिटीज एक्ट, 1987 के तहत चलेगी। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए) बनी है, वहीं हर राज्य में स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (एसएलएसए) और हर जिले में डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी (डीएलएसए) काम कर रही है। गरीब या कमजोर वर्ग का व्यक्ति सीधे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या राज्य प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है। यहां से उसे पैनल वकील और कोर्ट फीस के खर्च तक की मदद नियमानुसार मिल सकती है। इस सिस्टम में अलग से आवेदन की जटिल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि जरूरी दस्तावेज और पात्रता साबित होने पर तुरंत सहायता मिल सकती है।

पुराना ढांचा क्यों था बोझिल 

1976 वाले कानून में राज्य स्तर पर अलग बोर्ड और जिलों-तहसीलों में समितियां बनानी पड़ती थीं। गरीब को कानूनी मदद चाहिए तो उसे आवेदन देना पड़ता था, फिर समिति उसका केस देखकर तय करती थी कि मदद दी जाए या नहीं। इसका मतलब था लंबी फाइल प्रक्रिया, जिसमें वकील की मंजूरी, खर्च का हिसाब और आदेश कोर्ट तक भेजना शामिल था। यही अलग प्रशासनिक तंत्र धीरे-धीरे बोझिल साबित हुआ।

इसलिए बढ़ता गया भ्रम

1987 में राष्ट्रीय कानून आने के बाद पूरे देश में एकीकृत लीगल एड सिस्टम लागू हो गया था। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में पुराना 1976 का एक्ट चलता रहा। नतीजा यह हुआ कि कहीं केस राज्य वाले ढांचे में गया, कहीं राष्ट्रीय ढांचे में। इस ओवरलैपिंग से भ्रम बढ़ा और समितियां निष्क्रिय होती चली गईं। वकीलों और अदालतों की मान्यता भी धीरे-धीरे सिर्फ NALSA और SLSA वाले सिस्टम को मिलने लगी।

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