सुल्तान की लंबी उम्र सेहत बनाए रखने के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। बिहार उत्तर प्रदेश के साथ-साथ नेपाल में विधि विधान से रखे जाने वाले इस व्रत का बहुत महत्व है। हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। इसे जितिया व्रत कहा जाता है।
आईए जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि ,पूजा सामग्री और कथा
संतान की लंबी उम्र के लिए अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस वजह से कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 25 सितंबर को पड़ रही है इस वर्ष महिलाएं 25 सितंबर को जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखेंगी और अगले दिन 26 सितंबर को पालन करेगी
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा सामग्री
कुश की जीमूत वाहन की मूर्ति
मिट्टी से बनी चील और सियार की मूर्ति
अक्षत ,फल ,गुड ,धूप ,दिया ,घी , श्रृंगार ,सामग्री ,दूर्वा , इलाइची ,पान ,सरसों का तेल ,बांस के पत्ते , लौंग और गाय का गोबर
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार ,किसी गांव में एक पश्चिम की ओर एक बरगद का पेड़ था उस पेड़ पर एक चील रहती थी। पेड़ के नीचे एक मादा सियार भी रहती थी । दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी। दोनों ने कुछ महिलाओं को जीवित्पुत्रका व्रत करते देखा और तय किया वह भी वह भी व्रत रखेगी। दोनों ने व्रत रखा। उसी दिन गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई। उस आदमी का दाह संस्कार बरगढ़ के पेड़ के पास कर दिया गए उस रात बारिश होने लगी और मादा सियार शव खाने के लिए ललचाने लगी।
इस तरह माता सियार का व्रत भंग हो गया जबकि चील ने अपना व्रत नहीं तोड़ा। अगले जन्म में चील और मादा सियार ब्राह्मण की दो बेटियों के रूप में जन्म लिया। समय आने पर दोनों बहने शीलवती और कपुरावती का विवाह हो गया। शीलवती जो पिछले जन्म चील थी ,उसके 7 पुत्र हुए और कपुरवती पिछले जन्म में सियार थी सभी पुत्र जन्म के बाद मर गए। कपुरवती को शेलवती बच्चों से जलन होने लगी और उसने सेलवती के सभी बेटों की सर काट दिए।
लेकिन जीवितवाहन देवता देवता ने बच्चों को फिर से जिंदा कर दिया। अगले दिन बच्चों को जीवित देख कपुरवती बेहोश हो गई। इसके बाद शीलवती ने उसे याद दिलाया कि पिछले जन्म में उसने व्रत भंग दिया था जिसके कारण उसकी पुत्रों की मृत्यु हो गई इस बात को सुनकर शोक ग्रस्त का कपुरवती की मौतहो गई।