Neemuch News: इस साल नीमच जिले में पहली बार औषधीय गुणों वाली अरंडी (कैस्टर) की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। सरकार ने खरीफ सीजन के लिए जिले को चुना है और करीब 500 हेक्टेयर क्षेत्र में बोवनी का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए किसानों को निःशुल्क बीज भी बांटे गए हैं। अरंडी की खेती खास बात यह है कि इसे खेत के किनारे, मेड़ों और खाली जगहों पर भी आसानी से बोया जा सकता है।
अरंडी एक उपयोगी तिलहन फसल है, जिसमें औद्योगिक और औषधीय दोनों तरह के गुण पाए जाते हैं। इसके बीजों में करीब 45-55% तेल और 12-16% प्रोटीन होता है। यह तेल रिसनोलिक फैटी एसिड से भरपूर होता है, जो इसे साबुन, केश तेल, मरहम, वानिश, प्रिंटिंग इंक, कार्बन पेपर, और नाइलॉन जैसे कई उत्पादों के निर्माण में उपयोगी बनाता है।
नीमच कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सीपी पचौरी ने बताया कि अरंडी की खली खेतों में दीमक और भूमिगत कीटों से बचाव में उपयोगी होती है, जबकि पशु चिकित्सा में इसके तेल का इस्तेमाल कब्ज और अन्य रोगों के इलाज में किया जाता है। यह फसल कम पानी में भी उगाई जा सकती है, इसलिए असिंचित क्षेत्रों के लिए भी लाभकारी है।
सरकार का उद्देश्य है कि किसान परंपरागत फसलों के साथ अरंडी की खेती भी करें और अतिरिक्त आय प्राप्त करें। नीमच जिले में सामान्य रूप से यह पौधा सड़क या खेतों के किनारे दिखता है, लेकिन अब संगठित खेती की ओर बढ़ाया जा रहा है। किसानों को प्रति हेक्टेयर 6 किलो बीज उपलब्ध करवाया गया है।
डॉ. पचौरी के अनुसार असिंचित क्षेत्र में इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि सिंचित क्षेत्रों में यह 15-25 क्विंटल तक जा सकती है। किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली यह फसल भविष्य में औषधीय कृषि का अच्छा विकल्प बन सकती है।