Property Rights :ससुराल की प्रॉपर्टी पर दामाद का दावा, कोर्ट का फैसला जानकर हर कोई रह गया हैरान

Saroj kanwar
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Property Rights: भारत में संपत्ति को लेकर कानूनी विवाद अक्सर चर्चाओं में रहते हैं, खासकर जब मामला पारिवारिक रिश्तों से जुड़ा हो. हाल ही में एक अनोखा केस सामने आया, जिसमें एक दामाद ने ससुराल की संपत्ति पर अपना कानूनी हक जताया. लेकिन जब मामला कोर्ट में पहुंचा, तो जो फैसला आया उसने न सिर्फ उस दामाद को बल्कि आम लोगों को भी चौंका दिया.

क्या था मामला?


इस केस में एक व्यक्ति ने शादी के बाद वर्षों तक ससुराल में रहना शुरू कर दिया. उसने दावा किया कि वह ससुराल के घर में समय, श्रम और आर्थिक रूप से निवेश करता रहा है, इसलिए अब उसका उस संपत्ति में हिस्सा बनता है.

जब पारिवारिक रिश्ते बिगड़े, तो दामाद ने कानूनी रूप से संपत्ति पर दावा ठोंक दिया. उसका तर्क था कि वह लंबे समय से ससुराल में रह रहा है और खर्च भी कर चुका है, ऐसे में उसे वहां का स्वाभाविक हिस्सेदार माना जाना चाहिए.


कोर्ट का सख्त फैसला


मामला हाईकोर्ट पहुंचा और वहां से आया फैसला कानून की स्पष्टता को दर्शाता है. कोर्ट ने कहा:

ससुराल की संपत्ति पर दामाद का कोई भी कानूनी अधिकार नहीं होता.
केवल शादी के रिश्ते के आधार पर कोई संपत्ति का वारिस नहीं बन सकता.
अगर सास या ससुर ने वसीयत या गिफ्ट के जरिए संपत्ति का हिस्सा दिया हो, तभी वह वैध माना जाएगा.
भावनात्मक या आर्थिक योगदान कानूनी हक का आधार नहीं बनता.


भारतीय कानून में दामाद की स्थिति क्या है?


भारतीय कानून के अनुसार, सास-ससुर की संपत्ति उनके कानूनी उत्तराधिकारियों (legal heirs) को ही जाती है.

अगर वसीयत (Will) बनाई गई है, तो संपत्ति उसी के अनुसार बंटती है.
यदि वसीयत नहीं है, तो Hindu Succession Act, 1956 लागू होता है, जिसके तहत संपत्ति बच्चों में समान रूप से बांटी जाती है.
दामाद को कोई अधिकार नहीं होता, जब तक उसे स्वेच्छा से कुछ दिया न गया हो.


दामाद के तर्क पर कोर्ट का स्पष्टीकरण


दामाद का कहना था कि उसने घर में वर्षों रहकर योगदान दिया, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
यह दावा कानूनी दस्तावेज़ों के अभाव में अस्वीकार्य है.
संपत्ति का स्वामित्व उन लोगों का होता है जिनके नाम पर वह दर्ज हो.
रहना या खर्च करना, मालिकाना हक नहीं देता.
सोशल मीडिया का रिएक्शन
जैसे ही यह मामला मीडिया में सामने आया, सोशल मीडिया पर बहस शुरू हो गई.

कुछ लोग कोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से सही बता रहे हैं.
वहीं कुछ ने कहा कि अगर दामाद ने वर्षों साथ दिया, तो उसे कुछ न कुछ तो मिलना चाहिए.
लेकिन कानून की नजर में भावनाएं नहीं, सिर्फ हक और दस्तावेज मायने रखते हैं.


यह फैसला क्यों है अहम?


यह मामला सिर्फ एक पारिवारिक संपत्ति विवाद नहीं, बल्कि भारतीय कानून की स्थिति को स्पष्ट करने वाला निर्णय है.
इससे दूसरे ऐसे मामलों में भी दिशा मिल सकती है, जहां रिश्तों के आधार पर संपत्ति का दावा किया जाता है.
कोर्ट ने यह भी बताया कि हर रिश्ते की सीमाएं होती हैं, और उनके भीतर ही अधिकार तय होते हैं.


भविष्य में ऐसे मामलों से बचाव कैसे संभव है?


यदि कोई दामाद या दामाद का परिवार संपत्ति में हिस्सेदारी चाहता है, तो उसे लीगल गिफ्ट डीड या वसीयत के माध्यम से ही किया जाना चाहिए.
संबंधों की शुरुआत में ही संपत्ति को लेकर पारदर्शिता बनाए रखना विवाद से बचा सकता है.
दस्तावेजों और कानूनी प्रक्रियाओं के बिना, कोई भी दावा कमजोर साबित हो सकता है.

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