पिछले एक महीने में सरसों के तेल के थोक भाव में ₹30 प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन सबसे बड़ा घोटाला यह है कि दाम बढ़ने के साथ-साथ कंपनियों ने बड़ी चालाकी से पैकेट में तेल की मात्रा भी कम कर दी है। जहाँ पहले एक लीटर तेल का वज़न 910 ग्राम होता था, वहीं अब ज़्यादातर कंपनियाँ 810 से 840 ग्राम के पैकेट बेच रही हैं, जिनकी कीमत ₹170 से ₹180 प्रति पैकेट तक पहुँच गई है। इसका सीधा नुकसान उपभोक्ताओं को हो रहा है, जिन्हें लगभग 70 से 100 ग्राम कम तेल के लिए ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है।
कंपनियाँ तेल का वज़न कम कर रही हैं, लेकिन ग्राहकों को इसकी जानकारी नहीं है।

हड़िया पट्टी के एक किराना दुकानदार कुमार गौरव बताते हैं, “अब एक लीटर तेल में असल में सिर्फ़ 810-840 ग्राम तेल होता है। ग्राहकों को लगता है कि वे एक लीटर तेल खरीद रहे हैं, लेकिन असल में उन्हें कम तेल मिल रहा है।” कुछ बड़े ब्रांड अभी भी 910 ग्राम तेल बेच रहे हैं, लेकिन उनकी क़ीमतें ₹210 प्रति लीटर तक पहुँच गई हैं।
दुकानदार सुमित कहते हैं, “तेल की मात्रा में कमी और क़ीमतों में बढ़ोतरी ग्राहकों को भ्रमित कर रही है। उन्हें यह एहसास ही नहीं हो रहा कि वे कम क़ीमत में ज़्यादा क़ीमत चुका रहे हैं।” वज़न में इस हेराफेरी से उपभोक्ताओं का विश्वास कम हो रहा है।
बिक्री में भारी गिरावट और थोक बाज़ार की स्थिति
सावन के महीने में वज़न में कमी और आयोजनों की कमी ने तेल की बिक्री पर गहरा असर डाला है। गौरव के अनुसार, बिक्री में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। कलाली गली के एक थोक विक्रेता राहुल जैन ने पुष्टि की कि सरसों के तेल का थोक मूल्य, जो एक महीने पहले ₹150 प्रति किलो था, अब बढ़कर ₹180 हो गया है। थोक और खुदरा, दोनों स्तरों पर कीमतों में यह उछाल घरेलू बजट को बुरी तरह बिगाड़ रहा है।
गृहिणियों के रसोई बजट को भारी झटका
तेल की कीमतों और मात्रा में यह हेरफेर आम गृहिणियों के रसोई बजट को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। तिलक मांझी की रेखा देवी कहती हैं, “पहले पाँच लीटर तेल आसानी से एक महीने चल जाता था, लेकिन अब तेल महंगा हो गया है और मात्रा भी कम हो गई है। हमें पहले से ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। हमें पता ही नहीं चलता कि पैकेट में तेल की मात्रा कम हो गई है।” मुंदीचक की सुनीता देवी कहती हैं, “अब हमें अपने खाने में तेल की मात्रा कम करनी पड़ रही है ताकि बजट प्रभावित न हो।”

भारतीय तौल अधिनियम का उल्लंघन और सरकारी निगरानी की माँग
सीए प्रदीप कुमार झुनझुनवाला के अनुसार, भारतीय तौल अधिनियम के तहत एक लीटर तरल पदार्थ का वजन 910 ग्राम होना चाहिए। कंपनियाँ कीमतें बढ़ाने के बजाय, वजन कम कर रही हैं, जो उपभोक्ता हितों के विरुद्ध है। पैकेट पर शुद्ध वजन लिखना अनिवार्य है, लेकिन कई कंपनियाँ इसका पालन नहीं कर रही हैं। उपभोक्ता अधिकार समर्थकों की माँग है कि सरकार इस धोखाधड़ी पर कड़ी निगरानी रखे और दोषी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की ज़रूरत है और केवल “लीटर” के निशान को ही नहीं, बल्कि पैकेट पर लिखे “ग्राम” वजन को भी देखना चाहिए।