रासायनिक उर्वरकों से प्राकृतिक खेती की ओर लौटने की जरूरत

Saroj kanwar
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Burhanpur News: देश में अधिक उत्पादन की चाह में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। लंबे समय तक रासायनिक खाद के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी कठोर और बंजर हो रही है, जिससे फसलों की पैदावार घट रही है। किसान केवल अधिक उपज की लालच में रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे जमीन की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे कम हो रही है।

हालिया कार्यशालाओं में विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करनी होगी। लगातार एक ही तरह की फसल लगाने और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की कमी के कारण रासायनिक खाद का अत्यधिक उपयोग समस्या को और बढ़ा रहा है। इससे मिट्टी की जल धारण क्षमता और जीवांश में कमी आती है, और अंततः जमीन बंजर हो जाती है।

विशेषज्ञों ने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने से मिट्टी में जैविक पदार्थ और सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है। इसके लिए किसानों को फसल अवशेष, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवामृत, पंचगव्य और जैव उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, बल्कि उत्पादन भी स्थायी रूप से बढ़ेगा।

किसानों को यह समझना होगा कि केवल रासायनिक खाद के इस्तेमाल से अल्पकालिक लाभ तो हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक नुकसान अधिक होता है। प्राकृतिक खेती अपनाने से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है, बल्कि फसलों का पोषण मूल्य और बाजार में उनकी मांग भी बढ़ती है।

स्थानीय प्रशासन भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में सक्रिय है। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण, उचित बाजार मूल्य और बाजार तक पहुंच सुनिश्चित की जा रही है। आने वाले समय में जिले में प्राकृतिक खेती को मिशन मोड में लागू किया जाएगा, ताकि अधिक किसानों तक इसकी जानकारी और लाभ पहुँच सके।

कुल मिलाकर, मिट्टी की लंबी उम्र और सतत उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खेती अपनाना अनिवार्य है। यदि किसान इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे, तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और भविष्य में स्थायी कृषि सुनिश्चित होगी।

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