बिज़नेस आइडिया: छतरपुर ज़िले के कराहारी गाँव के रहने वाले 20 वर्षीय महेंद्र अपने गाँव में कड़ी मेहनत और लगन की मिसाल बन गए हैं। आठवीं कक्षा पास करने के बाद और कोई नौकरी न मिलने पर, उन्होंने ज़िंदगी में अपनी राह खुद बनाई। उन्होंने घर-घर जाकर दालें बेचना शुरू किया और कुछ ही महीनों में अपनी मेहनत से अच्छा-खासा मुनाफ़ा कमाने लगे।
महेंद्र को घूमने का शौक था
महेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही उनका पढ़ाई में ज़्यादा मन नहीं लगा और उन्हें घूमने-फिरने का शौक था। हालाँकि, जब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हुई, तो उन्होंने अपने पिता के पुराने काम को फिर से शुरू करने का फैसला किया। उनके पिता गाँव-गाँव घूमकर दालें और मेवे बेचा करते थे। इसी से प्रेरित होकर महेंद्र ने दो महीने पहले यह व्यवसाय शुरू किया।
महोबा से बेचते हैं
महेंद्र का गाँव, कराहारी, महोबा जिले के पास स्थित है। इसलिए, वह महोबा से मूंग, उड़द, अरहर और मसूर जैसी दालें थोक में खरीदते हैं। उदाहरण के लिए, वह मूंग दाल ₹60 प्रति किलो खरीदकर खुदरा में ₹100 प्रति किलो तक बेचते हैं। छतरपुर क्षेत्र में मूंग दाल की काफी माँग है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होता है।
गाँव-गाँव घूमकर कमाई
महेंद्र बताते हैं कि वह दाल बेचने के लिए रोज़ाना 5 से 10 गाँवों में जाते हैं। वह औसतन ₹2,000 प्रतिदिन बेचते हैं। पेट्रोल का खर्च निकालने के बाद भी, वह प्रतिदिन ₹1,000 से ज़्यादा बचाते हैं। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि यह काम न केवल लाभदायक है, बल्कि उन्हें लोगों से मिलने-जुलने का भी मौका देता है।
कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा
महेंद्र के अनुसार, इस व्यवसाय में लगभग कोई अतिरिक्त लागत नहीं है। मुख्य खर्च पेट्रोल का है। उनका कहना है कि उन्हें प्रति किलो दाल पर आसानी से ₹30 से ₹40 का मुनाफ़ा हो जाता है। रोज़ाना 50 किलो दाल बेचने से उन्हें औसतन ₹1,500 से ₹2,000 की कमाई होती है। वह सूखे मेवे भी बेचते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त मुनाफ़ा होता है।
ग्राहकों का विश्वास सबसे ज़रूरी है
महेंद्र कहते हैं कि ग्राहक एक बार उनसे दाल खरीद लेते हैं, तो अक्सर उनसे ही खरीदना पसंद करते हैं। वह अपने पुराने ग्राहकों को 5 रुपये कम में दाल देकर उनका विश्वास बनाए रखते हैं। यही विश्वास उनके व्यवसाय को गाँव-गाँव में पहचान दिला रहा है।