जिस शाहजहां के हरम में पांच हजार औरतें रखी जाती थी और जिसका पूरा इतिहास हिन्दुओं के नरसंहार और मन्दिरों के विध्वंस का रहा,उसी शाहजहां को प्रेम का पुजारी बताते हुए ताजमहल बनाने वाला बना दिया गया और भारत की आजादी के बाद से तमाम स्कूली बच्चों को यही कपोल कल्पित कहानी सुनाई गई। लेकिन द ताज स्टोरी के जरिये विकृत किए गए इस इतिहास की सच्चाई को सामने लाने की एक साहसी कोशिश की गई है। निर्माता निर्देशक की यह साहसिक कोशिश ना सिर्फ सफल हो रही है,बल्कि दर्शक भी इस विचारोत्तेजक फिल्म को पर्याप्त प्रतिसाद दे रहे है। रतलाम के गायत्री मल्टीप्लेक्स में प्रदर्शित की जा रही इस फिल्म के पहले दिन एक ही शो रखा गया था,लेकिन दर्शकों की प्रतिक्रिया को देखते हुए अब इसके दो शो प्रदर्शित किए जा रहे है।
ताजमहल को लेकर संभवत: पहला अधिकारिक शोध पुरषोत्तम नागेश ओक ने सन साठ के दशक में किया था। श्री ओक ने अपने पूरे शोध कार्य को ताजमहल एक हिन्दू भवन है नामक पुस्तक में प्रकाशित किया था। इसके बाद उन्होने अपने शोध को और संशोधित करते हुए ताजमहल को एक शिवमन्दिर बताते हुए इसका वास्तविक नाम तेजोमहालय बताया था,इसी का अपभ्रंश ताजमहल है। स्व.श्री ओक का एक तर्क यह भी था कि अगर ताजमहल शाहजहां की बेगम मुमजात महल का मकबरा था तो इसका नाम मुमताज महल होना चाहिए था ना कि ताजमहल।
बीते छ: दशकों में स्व.पीएन ओक के इस शोध की कभी भी अधिक चर्चा नहीं हुई,लेकिन अब देश के बदले हुए माहौल में यह विषय ना सिर्फ चर्चा में आ चुका है,बल्कि इस गंभीर विषय पर द ताज स्टोरी नामक की फिल्म तक प्रदर्शित हो चुकी है। द ताज स्टोरी पूरी तरह से एक कोर्ट रुम ड्रामा है,जिसमें ताजमहल का एक अधिकृत गाइड ताज महल के वास्तविक इतिहास को सामने लाने के लिए न्यायालय में याचिका दायर करता है और बिना किसी वकील की मदद के खुद ही केस की पैरवी करता है।
फिल्म के लेखक निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने पूरी फिल्म में ताज महल के सम्बन्ध में विभिन्न स्तरों पर किए गए शोध और ढूंढे गए तथ्यों को प्रभावी रुप से प्रदर्शित करते हुए दर्शकों के सामने तो यह प्रमाणित कर दिया कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने नहीं किया था,बल्कि यह राजा मानसिंह का महल था,जिसे शाहजहां ने मानसिंह के पौत्र जयसिंह से लेकर इसे मकबरे में तब्दील कर दिया था। लेकिन निर्देशक ने बडी चतुराई से फिल्म में प्रदर्शित न्यायालय द्वारा इसका कोई निर्णय नहीं कराया। फिल्म में प्रदर्शित न्यायाधीश अपने निर्णय में यह तो स्वीकार करते है कि एनसीआरटी की पाठ्य पुस्तकों में भारत का विकृत इतिहास पढाया जा रहा है,जिसमें मुगलों को बडे ही प्रजावत्सल राजाओँ के रुप में दिखाया गया है। जबकि दूसरी ओर भारत के महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे वास्तविक नायकों को इन पाठ्य पुस्तकों में कोई स्थान ही नहीं दिया गया है।
फिल्म में कोर्ट के दृश्य रोचक बन पडे है। आमतौर पर इस तरह के दृश्य दर्शकों को उबाउ लगने लगते है,लेकिन निर्देशक और पटकथा लेखक तुषार अमरीश गोयल ने इन दृश्यों की रोचकता को बनाए रखा है। कोर्ट के दृश्यों के माध्यम से निर्देशक ताजमहल के इतिहास से जुडे गंभीर प्रश्न और तथ्यों को प्रभावी रुप से सामने लाते है। इतिहास जैसे बोझिल विषय पर गंभीर फिल्म बनाना वैसे ही बहुत खतरे का काम है,लेकिन फिल्म में दर्शको की अच्छी संख्या और उनकी प्रतिक्रियाओं को देखकर लगता है कि दर्शकों में गंभीर और विचारोत्तेज फिल्मों को पसन्द करने वाला एक नया वर्ग तैयार हो चुका है।
केन्द्र की सत्ता में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली हिन्दुत्ववादी सरकार के आने के बाद इस तरह की फिल्मों को न सिर्फ बनाया जा रहा है,बल्कि इनमें से कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों ने सफलता के रेकार्ड भी कायम किए है। द ताज स्टोरी में परेश रावल जैसे दिग्गज अभिनेता ने अपने जीवन्त अभिनय से जान डाल दी है। यही कारण है कि रतलाम में पहले शो के प्रदर्शन के बाद ही मल्टीप्लेक्स संचालक पीयूष जैन ने इसके शो बढाकर दो कर दिए। द ताज स्टोरी में दर्शकों की बढती संख्या इस बात का भी संकेत है कि हिन्दी फिल्मों के दर्शकों की पसन्द अब हीरो हीरोइनों के नाच गानों से आगे बढकर गंभीर विषय होने लगी है। हिन्दी फिल्म इण्डस्ट्री में ऐसी फिल्में नाममात्र की ही होगी,जिनमें ना तो कोई प्रेम कहानी हो,ना ही गीत संगीत और ना कोई खलनायक। इसके बावजूद फिल्म सफल रही हो। द ताज स्टोरी एक ऐसी ही फिल्म है,जिसमें ना कोई प्रेम कथा है,ना कोई आइटम नम्बर,ना ही कामेडी और तो और खलनायक भी कोई व्यक्ति ना होकर व्यवस्था को दर्शाया गया है। इसके बावजूद यह फिल्म ठीक से चल रही है।
फिल्म मे दर्शकों की बढती संख्या से यह तथ्य भी सामने आता है कि वर्तमान समय में सोशल मीडीया बहुत ही प्रभावी भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडीया पर द ताज स्टोरी जबर्दस्त ढंग से चर्चित रहा है। इसका ट्रेलर जब सोशल मीडीया पर आया तो इसे लाखों लोगों ने देखा। अब जब फिल्म सिनेमाघरों में आ गई है,तो यहां भी उसे अच्छे दर्शक मिल रहे है।