ऊटी लहसुन पर किसान फिर से जोखिम,  बीज सस्ता हुआ, पर मुनाफे की चिंता बरकरार

Saroj kanwar
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Mandsaur News: ऊटी लहसुन की बुआई फिर शुरू बीते वर्ष के घाटे के बावजूद किसान जोखिम उठाकर मैदान में लौटे हैं। पिछली फसल में ऊटी किस्म के लहसुन का बीज किसान अक्सर 40–50 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आसपास खरीदा करते थे, पर जब फसल तैयार हुई तो मंडी में भाव कुछ हजार ही मिलने से भारी आर्थिक आघात झेलना पड़ा। इस अनुभव के बावजूद इस बार बीज की कीमत घटकर अधिकतम लगभग 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल रह गई, इसलिए कई किसानों ने पुनः ऊटी पर ही दांव लगाया है।

जिले में सालाना करीब 20 हज़ार हेक्टेयर में लहसुन की खेती होती है और ऊटी इसका एक महत्वपूर्ण भाग है। ऊटी किस्म में बीज लेने, बुवाई से लेकर कटाई तक खर्च बहुत अधिक आता है। एक किसान बताते हैं कि एक बीघा खेत में करीब दो क्विंटल ऊटी बीज चाहिए होता है। इस बार 17 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदे जाने वाले बीज पर ही प्रति बीघा करीब 34 हजार रुपए लगते हैं। बीज के अलावा उर्वरक, कीटनाशक-रोधक दवाइयाँ, मजदूरी और खेत की तैयारी के खर्चे मिलाकर अब तक प्रति बीघा कुल लागत लगभग 42 हजार रुपए तक पहुँच चुकी है और फसल तैयार होने तक और भी खर्च आना तय है।

मजदूरी का भी ओहदा भारी है; 15 मजदूरों की एक दिन की मजदूरी यदि 250 रुपए प्रति व्यक्ति मानें तो अकेले यह खर्च 3,750 रुपए बनता है। साथ ही खेत जोतने, हंकाई व अन्य छोटे-मोटे कामों पर अतिरिक्त हजारों रुपए खर्च होते हैं। किसान यह भी बताते हैं कि फसल तैयार होने के बाद मंडी में ऊटी के भाव यदि 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आसपास रहे तो ही वे अपनी लागत निकालकर कुछ लाभ कमा पाएंगे; इससे नीचे रहने पर फिर से उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

पिछले साल के अनुभव ने किसानों के मन में डर और आशंका दोनों छोड़ दी हैं, फिर भी कई किसानों ने इस सीजन में किसी अन्य फसल को त्याग कर समय पर बुवाई करने के लिए पूरा ध्यान लहसुन पर केंद्रित किया है। कुछ किसानों ने तीन चार बीघा तक ऊटी बुवाई की, जबकि कुछ ने पांच बीघा तक भी लगाई थी  पर पिछले साल की बिक्री ने कई की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। उन किसानो ने अब लागत-कटौती और बेहतर बिक्री की उम्मीद में खेतों की देखभाल और समय पर काम करने पर अधिक जोर रखा है।

खेती के जोखिमों के बावजूद स्थानीय किसान उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार मंडी के दाम बेहतर रहेंगे या कम से कम अपनी लागत निकल आएगी। प्रशासन और कृषि सम्बंधित विभागों से भी किसानों को ऐसे समय पर सहायक कदम उठाने की अपेक्षा रहती है  जैसे उचित भंडारण, विपणन सहायता और लागत घटाने के तरीके सुझाना। फिलहाल खेतों में मजदूर बीज की चौपाई कर रहे हैं और किसान फसल की निगरानी कर रहे हैं  यह तय है कि आने वाले महीनों में मंडी के भाव तय करेंगे कि यह सत्र लाभदायक रहा या फिर वही आर्थिक कठिनाइयाँ लौट आएंगी। फसल की गुणवत्ता पर ध्यान।

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