निर्धारित तिथि के बाद आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करने पर न केवल विलंब शुल्क लगता है, बल्कि कर बचाने के महत्वपूर्ण विकल्प भी हाथ से निकल जाते हैं। गाजियाबाद के एक हालिया मामले ने यह उजागर किया है कि नई कर व्यवस्था के तहत समय सीमा चूकने से कर देयता में कितनी भारी वृद्धि हो सकती है।
गाजियाबाद निवासी मोहित जैन ने हाल ही में 16 सितंबर की विस्तारित समय सीमा से पहले अपना आयकर रिटर्न दाखिल न कर पाने के बाद सवाल उठाया। उन्होंने दावा किया कि नई कर व्यवस्था के तहत रिटर्न दाखिल करने पर अब उन पर 7.5 लाख रुपये का कर बकाया हो गया है। वह जानना चाहते थे कि क्या इस स्तर पर कर बचाने का कोई और तरीका बचा है।
आईटीआर की विस्तारित समय सीमा और कर व्यवस्था का विकल्प
मनीकंट्रोल ने यह सवाल जाने-माने कर विशेषज्ञ सीए बलवंत जैन के साथ साझा किया। इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने बताया कि अधिकांश करदाताओं के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद 31 जुलाई होती है। हालांकि, 31 मार्च 2025 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए समय सीमा बढ़ाकर 16 सितंबर कर दी गई थी।
आयकर अधिनियम की धारा 115BAC के तहत, व्यक्तिगत करदाता और हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) कुछ शर्तों के अधीन रहते हुए पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं में से किसी एक को चुन सकते हैं।
नई कर व्यवस्था डिफ़ॉल्ट विकल्प है।
सीए बलवंत जैन ने स्पष्ट किया कि नई कर व्यवस्था डिफ़ॉल्ट व्यवस्था है। यदि कोई करदाता पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुनना चाहता है, तो उसे रिटर्न दाखिल करते समय या नियत तिथि से पहले यह विकल्प चुनना होगा। एक अनिवार्य शर्त यह है कि करदाता की कोई व्यावसायिक आय न हो।
व्यावसायिक आय न रखने वाले करदाता प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अपनी सुविधानुसार पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं के बीच बदलाव कर सकते हैं।
व्यावसायिक आय वाले करदाताओं के लिए नियम
व्यावसायिक या पेशेवर आय वाले करदाताओं के लिए नियम अधिक सख्त हैं। ऐसे करदाता अपने जीवनकाल में केवल एक बार पुरानी व्यवस्था से नई व्यवस्था में बदलाव कर सकते हैं। बदलाव के बाद, वे तब तक पिछली व्यवस्था में वापस नहीं जा सकते जब तक कि उनकी व्यावसायिक या पेशेवर आय पूरी तरह से समाप्त न हो जाए।
मोहित जैन अब कर क्यों नहीं बचा सकते?
सीए बलवंत जैन के अनुसार, मोहित जैन ने अपना रिटर्न दाखिल करते समय या समय सीमा से पहले पुरानी कर व्यवस्था का चयन नहीं किया। परिणामस्वरूप, अब उनके पास पुरानी व्यवस्था चुनने का विकल्प नहीं है। उन्हें अब नई कर व्यवस्था के तहत अपना आयकर रिटर्न दाखिल करना होगा और इसके अंतर्गत लागू पूर्ण कर देयता का भुगतान करना होगा।
यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आयकर रिटर्न देर से दाखिल करने से कर देयता बढ़ सकती है और मूल्यवान छूट और कटौतियों का नुकसान हो सकता है।