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नए अनाज के साथ बसंत ऋतू के आगमन का उत्स्व है होली ,यहां जाने होली की सही डेट

 

 इस साल पंचांग भेद की वजह से  कुछ जगहों से छह और कुछ जगहों पर 7 मार्च को होली दहन होगा। होली को जलाने के बाद 8 मार्च को होलाष्टक  खत्म होगा। प्रह्लाद  की जीत के साथ ही होली नई फसल और बसंत  आने का पर्व है। इस दिन जलती होली में अनाज चढ़ाने की परंपरा है।  ज्योतिष में होलिका दहन वाली रात को काफी महत्व बताया गया है। इस रात में की गईतंत्र सधना काफी जल्दी सफल होती है जो लोग मंत्र जप करना चाहते हैं उन्हें गुरु से परामर्श  जरूर करना चाहिए । 

जलती  होली में अनाज डालने का मतलब  यह है की नई फसल के लिए भगवान का आभार मानने का पर्व है

गुरु के मार्गदर्शन में मंत्र जप करेंगे तो साधना जल्दी सफल होती है। इस समय पर खास तौर पर गेहूं की फसल पकने लगती है।  पुराने समय फसल आने पर उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है।  फसल पकने की खुशी में होली मनाने और रंग खेलने की परंपरा है किसान जलती होली में नई फसल का कुछ भाग अर्पित करते हैं। दरअसल जब भी कोई फसल आती है तो उसका  कुछ अंश भगवान और  प्रकृति को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। जलती  होली में अनाज डालने का मतलब  यह है की नई फसल के लिए भगवान का आभार मानने का पर्व है। होली के समय से ही बसंत ऋतू की आरंभ होता है। बसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है। 

कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग  करने के लिए बसंत ऋतू को प्रकट किया था

बसंत  ऋतु के आने पर होली के उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है मान्यता है कि पुराने समय में फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए बसंत ऋतू को प्रकट किया था शिव जी की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने गुस्से में कामदेव को भस्म कर दिया बसंत ऋतु के आगमन से वातावरण सुहाना हो जाता है पुराने समय में अलग-अलग रंग को उड़ाकर वसंत ऋतु के आगमन का उत्सव मनाया जाता था तभी से होली रंगों से खेलने की परंपरा शुरू हुई है उस समय फूलों से रंग बनाई जाती थी।