
शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को उनकी खास तौर पर पूजा-अर्चना होती है दरअसल शनिवार का दिन शनि देव को अर्पित किया गया है कहते हैं कि शनि देवता की वक्र दृष्टि से इंसान तो क्या सृष्टि के रचयिता भी नहीं बच सके हैं प्रकृति के संचालन के लिए उन्हें भी प्रकृति के नियमों का पालन करना होता है।
पुरानी कथाओं के अनुसार शनिदेव की वक्र दृष्टि भोलेनाथ पर भी पड़ चुकी है शनिदेव अगर किसी पर प्रसन्न हो जाते हैं तो उसे धन-धान्य से भर देते हैं वहीं अगर शनिदेव किसी से रुष्ट हो जाए तो उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है भगवान भोलेनाथ शनिदेव की वक्र दृष्टि को लेकर एक पुरानी कथा भी प्रचलित है इस कथा के अनुसार एक बार शनि देव भोलेनाथ के दर्शनों के लिए कैलाश पर पहुंचे थे उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद लिया फिर शनिदेव ने भगवान शिव को विनम्र भाव से बताया कि कल आपकी राशि में मेरी वक्र दृष्टि पड़ने वाली है इस पर भगवान शिव आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि कितने समय के लिए शनि देव की वक्र दृष्टि मेरी राशि में रहेगी इस पर शनि देव ने कहा कि उनकी दृष्टि सवा पहर के लिए उनकी राशि पर रहेगी शनि देव की बात सुनकर भगवान भोलेनाथ की दृष्टि से बचने का उपाय सोचने लगे और अगले दिन में कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आ गए हो इस दौरान उन्होंने शनि देव की दृष्टि से बचने के लिए हाथी का रूप धर लिया।
जब सूर्यास्त के बाद वक्र दृष्टि का पहर बीत गया तो शिवजी दोबारा अपने वास्तविक रूप में आ गए और प्रसन्न होकर कैलाश पर लौट गए जब शिव जी कैलाश पर्वत पर पहुंचे तो वहां पहले से ही शनिदेव विराजमान थे इस पर शिव जी ने शनिदेव को कहा कि आप की वक्र दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ इस पर शनिदेव ने प्रभु से माफी मांगते हुए कहा कि मेरी वक्र दृष्टि की वजह से ही आपको देव योनि से पशु योनि में पृथ्वी लोक पर इतने समय तक वास करना पड़ा शनिदेव की यह बात सुनकर भगवान शिव भी मुस्कुरा दिए और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया।