इस दिन एकदशी की हुयी थी उत्तपति ,व्रत करके पा सकते है कई जन्मो के पापो से मुक्ति

ऊपर उत्पन्ना एकादशी व्रत अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को करते है इस बार यह 20 नवंबर को किया जाएगा। पुराणों के मुताबिक इस दिन से ही एकादशी व्रत शुरु हुआ है इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहते हैं साथ ही वैतरणी एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत के पुराणों में बहुत ही खास महत्व बताया गया है।
इसे उत्पन्ना और प्राकृत एकादशी भी कहते हैं
पदम पुराण के अनुसार इस दिन व्रत या उपवास करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं साथ ही कई यज्ञो को करने का फल भी मिलता है। शास्त्रों के अनुसार अगर एकादशी का व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल नहीं खानी चाहिए। इस व्रत में एक समय फलाहार कर सकते है। पूरी के ज्योतिषाचार्य डॉ गणेश मिश्र बताते हैं कि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को भगवान विष्णु से एकादशी तिथि प्रकट हुई थी। इसलिए इस दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इसे उत्पन्ना और प्राकृत एकादशी भी कहते हैं।
दिन एक दिन पहले यानी दशमी तिथि के भोजन के बाद अच्छी तरह दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में ना रह जाए
पदम पुराण के मुताबिक श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी की उत्पत्ति और इसके महत्व के बारे में बताया था व्रतों में एकादशी को प्रधान और सब सिद्धियों को देने वाला माना गया है। उत्पन्ना एकादशी के दिन पहले दिन एक दिन पहले यानी दशमी तिथि के भोजन के बाद अच्छी तरह दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में ना रह जाए ,इसके बाद कुछ भी ना खाएं और ना उस दिन अधिक बोले। सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद का व्रत का संकल्प लें। धूप ,दीप ,नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की पूजा करें और रात को दीप दान करें रात में सोए ना इस व्रत में रात भर पूजन भजन कीर्तन होते हैं।