
उत्तराखंड की पुष्कर दवे सरकार ने बुधवार को फिर छह आईएएस आईपीएस ऑफिसर का तबादला किया तो फिर से सवाल खड़ा हो गया कि आखिरकार उत्तराखंड में नौकरशाह इतने परेशान क्यों है प्रशासनिक सेवा के आईएएस अधिकारियों के 126 के कैडर के मुकाबले राज्य में सिर्फ 78 आईएस है इनमें से भी 6 केंद्र में डेपुटेशन पर है बचे 72 अफसरों में से कई जाने की तैयारी में लगे हुए हैं अब इससे कामकाज प्रभावित तो होता है साथ ही जानकार इसे से अच्छा संकेत नहीं मान रहे हैं।
उनका कहना है सिस्टम में कहीं तो कुछ कमी है इसकी वजह से यह सब हो रहा है राजनीतिक हस्तक्षेप इसका कारण बताया जा रहा है फॉरेस्ट चीफ रह चुके रिटायर्ड आईएफएस ऑफिसर ने कहा कि सेंटर सर्विसेज का अपना चार्म है कोई भी अफसर इस मौके को नहीं छोड़ना चाहेगा इससे एक्सपोजर भी बढ़ता है और कैरियर में एडिशनल सेक्रेटरी जैसे असाइनमेंट मिलने में आसानी रहती है लेकिन पहले ही कमी से जूझ रहे राज्य में यदि एक के बाद एक अफसर जा रहे हैं तो मामला जरूर गंभीर हो जाता है।
वही नाम ना छापने की शर्त पर एक आईएएस अफसर ने कहा है कि उत्तराखंड में राजनीतिक आस्था से एक बड़ा कारण है कि केंद्र में मौका मिले तो यहां कोई टिकना नहीं चाहता आए दिन मंत्री और अफसरों के बीच विवाद होते रहते हैं आए दिन अफसरों के विभागों में तबीयत बदलाव भी काम के माहौल को प्रभावित करता है हालिया विवादों को इस संदर्भ में एक नजर देखा जाना चाहिए 4 दिन पहले करीब 50 आईएएस और पीसीएस अफसरों के विभाग बदले गए राज्य के पर्यटन मंत्री सतपाल मंत्री और उनके विभाग के सचिव के बीच तनातनी की खबरें रहने के बीच दिलीप जावलकर की जगह सचिन कुर्वे को इस विभाग में लाया गया।
वही फॉरेस्ट चीफ के पद से रिटायर हो चुके आईएफएस ने कहा कि यूपी से चला आ रहा प्रशासनिक स्टेप उत्तराखंड ने अब अपना लिया है उतने ही विभाग बनाए हैं जितने उत्तर प्रदेश में थे जबकि यहां कई विभागों को मिलाकर एक ही विभाग होना चाहिए जैसे वन जलागम ,पर्यावरण मिलते जुलते विभाग हैइन्हें संयुक्त होना चाहिए. कृषि, उद्यान, ग्राम्य विकास को भी मर्ज किया जाना चहिए. ऐसा करने से अफसरों की कमी नहीं होती।