पाकिस्तान में क्यों भगत सिंह की फांसी के 92 साल बाद क्यों उठी उन्हें ये सम्मान देने की मांग ,यहां जाने क्या है पूरा माजरा

लाहौर हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह को एक 1931 में दी गई सजा का मामला फिर से खोलने और उन्हें मरणोपरांत सरकारी सम्मान दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर शनिवार को आपत्ति जताई। कोर्ट का कहना है कि यह मामला सुनवाई की योग्य नहीं है। वही याचिकाकर्ताओंने कहा कि वह भगत सिंह को सांडर्स हत्या मामले में निर्दोष प्रमाणित करना आने के लिए अडिग है।
एक मनगढ़ंत मामले में फांसी की सजा दी गई थी
दरअसल 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के आरोप में ब्रिटिश शासको ने भगत सिंह उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी। इस मामले में भगत सिंह को शुरू में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। लेकिन बाद में एक मनगढ़ंत मामले में फांसी की सजा दी गई थी। याचिकाकर्ताओ ने शामिल भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों की समूह की याचिका लाहौर हाईकोर्ट में एक दशक से लंबित थी।
शुजात अली खान ने ने 2013 में वृहद पीठ के गठन के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया था
उन्होंने कहा कि जस्टिस शुजात अली खान ने ने 2013 में वृहद पीठ के गठन के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया था। राष्ट्रीय महत्व की इस मामले को पूरी पीठ के सामने रखना चाहिए। लाहौर हाईकोर्ट ने इस पर शीघ्र सुनवाई और बड़ी पीठ के गठन पर आपत्ति जताई है और कहा की याचिका बड़ी बड़ी पीठ की गठन के लिए सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों के पैनल में लाहौर में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जिस पैनल में भी वह शामिल थे। वह याचिका साल 2013 से लंबित है। याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह ने उपमहाद्वीप में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया उपमहाद्वीप में भगत सिंह ने नए केवल सीखो और हिंदुओं ही नहीं बल्कि मुसलमानों के लिए भी संघर्ष किया।