अमेरिकी और भारतीय ट्रको की बनावट क्यों होती है अलग ,यहां जाने

उदाहरण के लिए अगर कोई टेस्ला कर वैश्विक स्तर पर लॉन्च होती है तो भारत में उसका डिजाइन अमेरिका जैसा ही होता। यही बात एसयूवी पर भी लागू होती है। लेकिन ट्रैकों के मामले में ऐसा नहीं है भारतीय ट्रक और अमेरिका ट्रैकों में बहुत बड़ा अंतर है इसके लिए कई कारण है इन्हीं बातों को जानने के लिए हम छोटा और सरल भाषा में समझते हैं कि अमेरिकी और भारतीय ट्रक अलग-अलग क्यों हैं।
अमेरिकी ट्रैकों को देखते हैं तो सबसे पहले जिस चीज पर हमारा ध्यान जाता है वह ट्रक का आकार और लुक
जब हम अमेरिकी ट्रैकों को देखते हैं तो सबसे पहले जिस चीज पर हमारा ध्यान जाता है वह ट्रक का आकार और लुक। अमेरिकी ट्रक के आकार का सबसे बड़ा कारण है। वहां की सड़क बड़ी और चौड़ी है वहां ट्रक हमसे दोगुनी तेजी से दौड़ सकते हैं। क्योंकि उन्हें हाई स्पीड की सुविधा दी जाती है साथ ही ट्रक में लिमिट के अंदर ही माल लोड किया जाता है अतिरिक्त माल लोड नहीं किया जाता है।अमेरिकी और भारतीय ट्रैकों के बीच सबसे बड़ा अंतर ड्राइवर के केबिन का है जब अमेरिकी कंपनियां ट्रक बनाती है तो ड्राइवर कैसे आराम से ट्रक चला पाएगा। उसका केबिन कितना आरामदायक होगा इस पर ध्यान देती है। अमेरिकी ट्रैकों में एक विशाल केबिन होता है जहां दो लोग तो अलग-अलग आराम से सो सकते हैं और घूम फिर सकते हैं। इसके अलावा अमेरिकी ट्रक को अन्य बेहद जरूरी सुविधाएं भी मुहैया करवाई जाती है। लंबी यात्राओं के लिए ट्रक ड्राइवर केबिन दैनिक जीवन के लिए आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित है।
भारतीय ट्रैकों के आकार के लिए यहां की सड़क जिम्मेदार है
वहीं भारतीय ट्रैकों की बात करें तो भारतीय ट्रैकों के आकार के लिए यहां की सड़क जिम्मेदार है। भारत में भी प्रमुख राजमार्ग भीड़भाड़ वाले हैं। हर जगह संकरी गलियां हैं, हर जगह संकरी गलियां है। क्योंकि कुछ ग्रामीण इलाके हैं इसलिए सड़के खराब है इन सभी स्थितियों के कारण हम इस आकर ट्रक बनाते हैं। इस डिजाइन के ट्रक , गतिशीलताक्ष दक्षता और साहित्य को संतुलित करते हैं। हालांकि भारतीय ट्रकों की विशिष्टता उनके लेआउट से परे है। क्योंकि भारतीय ड्राइवर के लिए उनका दूसरा घर होता है भारतीय ट्रैकों कााथायी घरो में बदल दिया जाता है क्योंकि दिन-रात यात्रा करनी पड़ती है। अमेरिकी तर्को में कंपनी खुद ही केबिन में सुविधा मुहैया करवाती है जबकि भारतीय ट्रको में सुविधा ड्राइवर खुद बनाता है। सरकारी नियमों के बावजूद भारतीय ट्रैकों के डिजाइन में ज्यादा बदलाव नहीं होता है।