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राजस्थान के इस जिले को जितने की हिम्मत नहीं कर पाया कोई ,यहां अब तक भी होता रहता है किले का निर्माण

 

अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए जाने जाने वाले राजस्थान और इसमें भी अलग अलग पहचान रखने वाले जोधपुर शहर आज 565 बरस का हो गया।  आज उसका स्थापना दिवस है । आज  चारों तरफ स्थापना दिवस की खुशी है। वही दूर से मेहरानगढ़ किला  दिखाई देता है जो प्रत्येक शहर वासी में एक नई ऊर्जा का संचार करता है  यह मेहरानगढ़ किला अपने आप में शहर की पहचान है। आज हम आपको मेहरानगढ़ किले के भी लेकर चलते हैं और इसके इतिहास के बारे में बताते हैं। 

जोधपुर का मेहरानगढ़ किला भारत की प्राचीनतम किले में से एक है

जोधपुर का मेहरानगढ़ किला भारत की प्राचीनतम किले में से एक है। भारत की समृद्ध इतिहास का प्रतीक है। मेहरानगढ़ देश की सबसे बड़ी किलो में से एक है। साथ ही बड़ी बात यह है कि इस किले को आज तक कोई जीत नहीं पाया है।  इसलिए इसके लिए को 'अजय 'किला कहा जाता है। मेहरानगढ़ का निर्माण 1459 में राव जोधा ने शुरू करवाया था गढ़ किला शहर से 410 की फीट की ऊंचाई पर स्थित है । किले में बहुत सारे पहले इस बनाई गई किले तक पहुंचने के लिए भीतरी शहर में से घुमावदार रास्ता पहुंचता है। इस किले में कुल 7 दरवाजे हैं जो मारवाड़ के राजाओं ने अपनी जीत की खुशी में  बनवाये थे। 

म्यूजियम में राठौड़ों की सेना पोशाक और चित्र भी है

किले में एक शानदार म्यूजियम भी है इसमें राजाओ की  पुरानी पालकियों  को रखा गया है।  म्यूजियम में राठौड़ों की सेना पोशाक और चित्र भी है। राव जोधा ने मंडोर से अपनी राजधानी को सुरक्षित जगह में स्थापित करने के लिए मंडोर से 9 किलोमीटर दूर यहां आकर नया शहर बसाया और मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। मेहरानगढ़ किले की दीवारें 36 मीटर ऊंची और 21 मीटर चौड़ी है। कहते हैं कि इस किले का निर्माण काम कभी नहीं रुकता यानी हर समय यहां कुछ ना कुछ काम चलता रहता है। वहीं एक और बात इस किले को अपने आप में अलग बनाती है कि इस किले पर हर वक्त चील उड़ती रहती है।  मान्यता है कि यह चील माता का रुप है यहां के लोगों की रक्षा करती है। इन चीलों के लिए प्रतिदिन 4:00 बजे भोजन की व्यवस्था भी राज परिवार की तरफ से करवाई जाती है। 

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