इन सस्ती मिठाइयों में चाह कर भी नहीं की जा सकती है मिलावट ,यहां जाने इनके बारे में

मिलावट करने वाले तो किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलावट करने में संकोच नहीं करते किंतु जिन मिठाइयों में कम से कम संख्या में और कम से कम मूल्य की सामग्री प्रयोग होती है उन में मिलावट नहीं की जाती है। इन मिठाइयों में अनेक दीपावली की पारंपरिक रूप से भोग भी लगाई जाती है। इन मिठाइयों के साथ कई लोगों की बचपन की स्मृतियां भी जुड़ी हुई है। '
मिश्री
मिश्री मात्र एक सामग्री होती है शक्कर के केलाशो को बड़ा करके बनाई जाती है मिश्री। इसमें मिलावट करने के लिए कोई भी अन्य पदार्थ ही नहीं है जो मीठा स्वाद भी देऔर जो मिश्री का आयतन भी बढ़ा सके।
बतासा
बतासे भी शक्कर की ही बने होते हैं इसमें मात्र अंतर यही है कि बतासे के लिए विशेष विधि से चासनी बनाकर गाढ़ी चासनी को बताशे का आकार में सुखाया जाता है। विवाह हो या बच्चे का जन्म बताशे सदा पारम्परिक बधाई में बँटते रहे हैं। लक्ष्मी पूजन में खील-बताशों का भोग चढाने की परम्परा रही है।
मीठे मखाने
मखानी खिल के साथ यह मखाने मंदिरों की प्रसाद में मिलते हैं / यह भी दीपावली पर पूजन में रखे जाते हैं । यह भी शक्कर पर आधारित मिठाई है इसमें मिलावट नहीं की जा सकती।
चिक्की
चिक्की गुड़ और मूंगफली की चिक्की में भी कुछ और चीज नहीं मिला सकते हैं। यह भी एकदम शुद्ध होती है क्योंकि कोई और चीज मिलाना इसमें संभव नहीं है।
खांड की गुड़िया
बंगाली मिट्टी की गुडिया का यह चित्र प्रतीकात्मक है। किन्तु, खाँड की गुडिया का आकार यही होता है। इन गुडियों में कोई रंग नहीं किया जाता था। मेरे गृह नगर भीलवाड़ा में बडे मन्दिर के पास अब भी कुछ हलवाई सम्भवतः इन्हें बनाते हों। यह गुडिया चाशनी को एक साँचे में जमाकर बनाई जाती है। इनके दीपकों में घी अथवा खाद्य तेल की बत्ती जलाई जा सकती है। इन्हे लक्ष्मी पूजन में रखा भी जाता था। फिर यह मिठाई हम बच्चों के खेलने-खाने के काम आती थी।
पेठा
बचपन से अब तक की सब की पसंद बना हुआ पेठा वस्तुतः शक्कर की चाशनी से संरक्षित पेठा है जिसे पहले चूने के पानी से परिशोधित कर फिर चाशनी में डालकर कुछ सुखाया जाता है। चाशनी में भींगा पेठा बहुत ही तृप्ति देने वाला मिष्ठान्न है।